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________________ 'ये आज हवाएं मचल-मचल गद होजाते हैं बड़ों के प्रति आप में आदर और विनय करती आपका अभिनन्दन है। है। सद्भाव-सदाचार स्नेह शुद्धात्म भाव, सहिष्णुता नभ के नक्षत्र चमक-चमक ऐसे सद्गुण हैं जिनके कारण आप के चरणों में हम करते चरणों में वन्दन है।' सभी नत हैं, हम अनन्त आस्था के साथ वन्दन और एक ओर भारत की पुण्य धरा, राम, कृष्ण, अभिनन्दन करती हुई यह भव्य भावना भाती हैंमहावीर, बुद्ध, गुरु गोविन्दसिंह, नानक देव, छत्रपति "हजारों वर्ष जी करके, शिवाजी, महाराणा प्रताप, महात्मा गाँधी जैसे नर सभी को पथ प्रदर्शन दो। वीरों को जन्म देकर गौरवान्वित है। तो दूसरी अध्यात्म की दिव्य ज्योति, ओर ब्राह्मी, सुन्दरी, सीता, चन्दना, चेलना, मीरा, औ ज्ञान का अमृत वर्षको " दुर्गा, पद्मिनी और लक्ष्मीबाई जैसी सन्नारियों को जन्म देकर सौभाग्य शालिनी हई है। उन नर और नारियों ने भारत की महिमा और गरिमा में चारचाँद लगाए हैं। यह सत्य है पुरुष हिमालय की तरह जन-जन का आकर्षण केन्द्र रहा है तो नारियाँ परम ज्ञान सालिका भी सरिता की सरस धारा की तरह जन-जीवन को --मुनिश्री विनयकुमार "भीम" सरसब्ज बनाने का अथक प्रयास करती रही हैं। साध्वी रत्न श्री पुष्पवती जी एक परम विदुषी साध्वी हैं, वे स्व-कल्याण तो कर ही रही हैं, साथ सम्पूर्ण विश्व में सम्मान बहुत से साधक और ही पर कल्याण में भी संलग्न हैं आपका नाम पूष्प साधिकाओं को प्राप्त हुआ है और हो सकता है। है, पुष्प में सुगन्ध होती है आप में भी संयम की किन्तु श्रद्धा किसी विरले को ही प्राप्त होती है। सुगन्ध है। आप ऐसे पूष्प हैं जो सदा-सर्वदा खिले जो स्वयं श्रद्धामय होता है, श्रद्धेय के प्रतिपूर्ण रहते हैं। आप श्रमण संघ के उपवन में खिले हए निष्ठा के साथ समर्पित होता हैं और जिसका सदाबहार पुष्प हैं। जीवन, मन, वचन, कर्म में एकरूप समरस होता हमने सर्व प्रथम आपके दर्शन प्रना सन्त सम्मे- है जगत् उसी के प्रति श्रद्धा का समर्पण करता है। लन में किये, प्रथम दर्शन में ही आप श्री के स्नेह परमविदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी स्थानक और सद्भावनापूर्ण सद् व्यवहार से हम प्रभावित र वासी समाज की एक परम सम्माननीय साध्वीरत्न हुईं । आप में अनेक गुण हैं उन गुणों का वर्णन करने हैं, जिनके प्रति सम्पूर्ण समाज की अपार श्रद्धा एवं में मेरी लेखनी कहाँ समर्थ है, वे सारे गुण मेरी * असीम आस्था है। उनमें विद्वता और विनम्रता का लेखनी के नुकीले नोक से उतारे नहीं जा सकते । में अद्भुत और मधुर संगम है। साध्वीजी अजात तथापि हम इतना कह सकते हैं कि आपका हृदय ___ शत्रु हैं। आकाश से भी अधिक विशाल है। और साथ ही आपका व्यक्तित्व बहुत ही जुभावना व चिन्तन उसमें सागर से भी अधिक गहराई है। आपका गहरा है। आपकी वाणी मधुरता तथा ओजस्विता दृष्टिकोण बहुत ही विशाल है, यही कारण है कि से परिपूर्ण है । आप सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, और आपकी दृष्टि में अपने और पराए का भेद नहीं है। सम्यक्चारित्र की प्रतिमुर्ति हैं । प्रकृति सरल, मिलनजो पराए हैं वे भी आपके अपने ही हैं । छोटों से भी सार और गुण सम्पन्न है । आपके बहुमुखी व्यक्तित्व आप इतना प्यार करती हैं कि वे आपके स्नेह से गद् में अनोखा आकर्षण है। सरलता, सौम्यता, उदा ३८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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