SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ముందంజలంతరించండంచడంందించిందించడం కారణంగా अ न्त र सा ध ना की ए क स फ ल या श्री --महासती कुसुमवतीजी महाराज SEEDHOLDERSESSIOESSESEDIEDCHCEEDEDICAEDEREDEDGCSCGESEPHEBEDEOHDDEDESEDESEEDSCHEESERESEDDRESSESE D CGLDIERESENICIPEDIOPENISEDIESEGEDEODESEELE जैन धर्म की साधना अन्तःपरिमार्जन की जाय तो वे नख-शिख सरल हैं, निर्दम्भ हैं, मैंने उन्हें साधना है, आत्म-परिष्कार की उपासना है । वह बहुत ही निकट से देखा है वर्षों तक मै उनके सतत् बाह्य वेश-भूषा और कर्मकाण्ड की चमक-दमक में साहचर्य में रही हूँ। कितनी ही बार मैंने उन्हें समाप्त नहीं होती। उसका मार्ग बाहर की अपेक्षा परखा है। वे शत-प्रतिशत सरल हैं - अनेकों बार अन्तरंग अधिक है यही कारण है, कि स्त्री-पुरुष अदम्भ भाव की कसौटी पर वे खरी उतरी हैं। आदि का बिना भेद-भाव के कोई भी व्यक्ति आन्त- उनका आचार सरल है, विचार निर्मल है, और रिक साधना से जीवन को साधकर मोक्ष प्राप्तकर परस्पर व्यवहार स्नेह और सौहार्द से तरल है। सकता है। जो भी किया वह साफ और जो भी कहा वह भी परम विदुषी साध्वीरत्न महासती श्री पुष्पवती साफ उन्हें लुकाव और छिपाव पसन्द नहीं। जी इसी अन्तरंग साधना की एक प्रशस्त यात्री हैं, पुष्पवतीजी के दीक्षा के कुछ माह पूर्व मेरी बाल्यकाल में उन्होंने श्रमणधर्म की निर्मल दीक्षा हुई। हम दोनों एक ही सद्गुरुणी की शिष्या साधना को स्वीकार किया और तब से सतत रही हैं । हम दोनों में अपार स्नेह और सद्भावना बिना किसी प्रकार का शोरगुल मचाए, विज्ञा- रही, हम दोनों ने साथ-साथ अध्ययन किया और पनबाजी से दूर रहकर मौन भाव से सद्गुरुणी परीक्षाएँ दी। उनकी बुद्धि बहुत ही तीक्ष्ण थी, निदिष्ट अध्यात्म पथ पर सिंहनी की भाँति निरन्तर प्रत्येक विषय के तल छट तक वे पहुँचती थी तथापि गति और प्रगति करती रहीं। आंधी आई, तूफान उनमें नम्रता कूट-कूटकर भरी थी । अहंकार और आए और भयंकर झंझावात भी आये पर न कहीं ममकार का नाग उन्हें कभी डंसा नही। उनकी भटकी न रुकी, किन्तु विवेक और वैराग्य की वाणी और व्यवहार में सदा मुझे नम्रता के संदर्शन जगमगाती मशाल लेकर निरन्तर अपने लक्ष्य की होते रहे हैं। ओर बढ़ती रही; उनकी साधना सभी के लिए एक अध्ययन के पश्चात् वे लम्बे समय तक उदर मूर्तिमान आदर्श है। व्यथा, सिर व्यथा आदि से परेशान रही, किन्तु साधना की सर्वप्रथम कसौटी है सरलता, कभी भी हताश और निराश न होकर वीरबाला निष्कपटता, अदम्भता बिना सरलता के आत्म- की तरह संकटों को परास्त करती हुई वे आगे बढ़ी शुद्धि नहीं हो सकती। द्रव्य-काल-भाव की दृष्टि हैं। वे एक सफल लेखिका हैं, होंने दशवैकालिक से बाह्याचार में कुछ परिवर्तन हो सकता है पर जैसे आगम ग्रन्थरत्न का सम्पादन और विवेचन यदि उसका हृदय सरल है, तो उसकी साधना घृत- किया है तो किनारे-किनारे, सती का शाप, कंचन सिक्त पावक के समान सहज, सरल और निधूम और कसौटी, फूल और भंवरा जैसे श्रेष्ठ उपन्यासों होगी, निर्मल होगी। महासती पुष्पवतीजी सरलता की लेखिका भी हैं । लेखिका के साथ कुशल प्रवचन की ज्योतिर्मय मूर्ति हैं,यदि साहित्यिक भाषा में कहा की भी हैं। अन्तर साधना की एक सफल यात्री | २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy