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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ E m a .a bea . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पूर्वीय देश के राजा जयराज की पुत्री 'भोगवतो' का विवाह सूरसेन राजा के पुत्र नागराज के साथ हुआ था । नागराज आकृति से जैसा भयंकर था, प्रकृति से भी वह वैसा ही भयंकर था। किन्तु भोगवती की श्रद्धा, सेवा एवं नम्रता ने उसका हृदय-परिवर्तन कर दिया। वह धर्म और भगवान् के प्रति श्रद्धाशील बन गया। उसके पिता ने उसे योग्य जानकर राज्यभार सौंपा। इस कारण उसके मझले भाई के दिल में उसके प्रति ईर्ष्या एवं जलन पैदा हो गई । एक बार नागराज तीर्थयात्रा करके अपने देश की ओर वापस लौटा तो उसके मझले भाई ने विद्रोह खड़ा कर दिया। शहर से कुछ ही दूर रास्ते में ही वह नागराज को मारने पर उतारू हो रहा था । नागराज को भी अपने छोटे भाई की बेवफाई से गुस्सा आ गया था, अतः वह भी तलवार निकाल कर लड़ने को तैयार हो गया। दोनों ओर से लड़ाई की नौबत आ गई थी। कुछ ही क्षण में अगर भोगवती बीच-बचाव न करती तो दोनों तरफ खून की नदियाँ बह जातीं। ज्योंही दोनों भाई एक-दूसरे पर प्रहार करने वाले थे, भोगवती दोनों के घोड़ों के बीच में खड़ी होकर बोली-“मैं तुम दोनों को कभी लड़ने न दूंगी। पहले मेरे पर दोनों प्रहार करो, तभी एक-दूसरे का खूनखराबा कर सकोगे।" भोगवती के इन शब्दों का जादुई असर हुआ। दोनों भाइयों की खींची हुई तलवारें म्यान में चली गईं। दोनों के सिर लज्जा से झुक गये। फिर भोगवती ने अपने मझले देवर को तथा अपने पति नागराज को भी युक्तिपूर्वक समझाया। भोगवती नागराज की पथ-प्रदर्शिका बन गई थी। उसकी सलाह से नागराज ने ध्र व के नाटक का आयोजन किया। जब ध्रव के नाटक में ऐसा दृश्य आया कि वह अपने सौतेले भाई के लिए जान देने को तैयार हो गया, तब नागराज के भाइयों से न रहा गया । वे नागराज के चरणों में गिर पड़े। नागराज ने चारों भाइयों को गले लगाया और उन्हें चार इलाकों के सूबेदार वना दिये । सचमुच, भोगवती ने पारिवारिक जीवन में शान्ति के लिए अद्भुत कार्य किया। संसार के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि विश्व में शान्ति के लिए विभिन्न स्तर की शान्त क्रान्तियों में नारी की असाधारण भूमिका रही है। जब भी शासन सत्र उनके हाथ में आया है, वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक सफल हुई हैं। इग्लैण्ड की साम्राज्ञी विक्टोरिया से लेकर इजराइल की गोल्डामेयर, श्रीलंका की श्रीमती भन्डारनायके, तथा भारत की भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी आदि महानारियाँ इसकी ज्वलन्त उदाहरण हैं। पुरुष-शासकों की अपेक्षा स्त्री शासिकाओं की सूझ-बूझ, करुणापूर्ण दृष्टि, शान्ति स्थापित करने की कार्यक्षमता अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुई है । यही कारण है कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी को कई देश के मान्धाताओं ने मिलकर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुखा बनाई थी। उनकी योग्यता से वे सब प्रभावित थे । इन्दिरा गाँधी ने जब गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के समक्ष शस्त्रास्त्र घटाने, अणु युद्ध न करने, तथा अणु-शस्त्रों का विस्फोट बन्द करने का प्रस्ताव रखा तो प्रायः सभी ने उसका समर्थन किया। स्व० इन्दिरा गाँधी ने ऐसा करके विश्व शान्ति के कार्यक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इतना ही नहीं, जब भी किसी निर्बल राष्ट्र पर दवाब डालकर कोई सबल राष्ट्र उसे अपना गुलाम बनाना चाहता, तब भी वे निर्बल राष्ट्र के पक्ष में डटी रहती थीं। हालांकि इसके लिए उन्हें और अपने राष्ट्र को सबल राष्ट्रों की नाराजी और असहयोग का शिकार होना पड़ा । बंगला देश पर जब पाकिस्तान की ओर से अमेरिका के सहयोग से अत्याचार ढहाया जाने लगा, तब करुणामयी इन्दिरा गाँधी का मातृ हृदय निरपराध नागरिकों और महिलाओं की वहाँ लूटपाट, हत्या और दमन को देखकर द्रवित ...... विश्व-शान्ति में नारी का योगदान : मुनि नेमिचन्द्र जी | २७३ .. ..... . www.ia
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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