SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 604
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ HARIALLAHABHARAutiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHiमामामामामा आलोचना-प्रत्यालोचना, छींटाकशी-समस्त, वातावरण को इतना विषाक्त बना देती है कि स्वयं साहित्य ही-'साहितस्य भाव साहित्यं'-अपनी अर्थवत्ता खो बैठता है। बौद्धिक वाद-विवाद कभी-कभी इतने छिछले स्तर पर आ उतरता है कि हाथा-पाई की नौबत आ जाती है। कर्नाटक की प्रसिद्ध जैन कवयित्री कंती देवी (ई० सं० ११०६ से ११४१) के जीवन की निम्न घटना इस तथ्य का पुष्ट प्रमाण है कि साहित्यिक क्षेत्र में भी नारी ने संघर्ष के मार्ग का अनुसरण न कर वातावरण को सौहार्दपूर्ण बनाने का प्रयास किया है। कहा जाता है कि कंती की अलौकिक प्रतिभा और बुद्धि वैलक्षण्य के कारण उनका समकालीन कवि पंप उनसे ईर्ष्या करता था तथा प्रतिक्षण क्षिद्रान्वेषण कर नीचा दिखाने की कोशिश करता था। पंप ने अनेक कठिन से कठिन समस्यायें प्रस्तुत की किन्तु कंती उनसे किसी भी प्रकार परास्त नहीं हुई। अंत में एक दिन कवि पंप निश्चेष्ट हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। पंप को मृत समझकर कंती का निश्छल हृदय करुणाद्रवित हो चीख उठा "हाय ! मुझे मेरी जिन्दगी से क्या लाभ है ? मेरे गुण और काव्य की प्रतिष्ठा रखने वाला ही संसार से चल बसा। पंप जैसे महान कवि से ही राजदरवार की शोभा थी और उस सुषमा के साथ मेरा भी कुछ विकास था।" इन शब्दों को सुनते ही पम्प ने आँखें खोल दीं। उसका हृदय अपने प्रति घृणा और पश्चात्ताप से भर उठा । कॉफी पी-पीकर अपने साथी साहित्यकारों को कोसने वाले बुद्धिजीवियों की आँखें इस विशाल हृदया कवयित्री के स्पृहणीय आचरण से खुल जानी चाहिए। नारी स्वयं तो क्षमाशीला है ही, क्रूरकर्म करने को उद्यत पुरुषों को स्नेह, सहनशीलता और सदाचार का पाठ पढ़ाने का उत्तरदायित्व भी वह सफलतापूर्वक निभाती है। "प्रसाद" जी के शब्दों में"स्त्रियों का कर्तव्य है कि पाशववृत्ति वाले क्रूरकर्मा पुरुषों को कोमल और करुणाप्लुत करें" । (अजातशत्रु नाटक) श्वेताम्बर साहित्य में आचार्य हरिभद्रसूरि के जीवन वृत्तान्त में नारियों के इस कर्तव्य-पालन का सुन्दर उदाहरण दृष्टिगत होता है अपने शिष्यों के बौद्धों द्वारा मारे जाने पर आचार्य हरिभद्र क्रोधवश बौद्धाचार्यों को मंत्रबल से आकर्षित कर उन्हें मारने को उद्यत हुए । उस समय “याकिनी महत्तरा" ने समझाकर उनके क्रोध को युक्तिपूर्ण ढंग से शांत किया। आचार्य हरिभद्र सूरि ने “याकिनी महत्तरा" के उपकार को “याकिनी महत्तरा सूनु" के रूप में अपना परिचय देते हुए व्यक्त किया है। भारतीय नारी ने प्रतिपक्ष की क्रोधाग्नि को समता और शान्ति के शीतल जल से तो शान्त किया ही है, समय की पुकार पर उसने रणचण्डी का रूप धरकर कर आतताइयों के विनाश के लिए अपने नाजुक हाथों में तलवार भी धारण की है । चंद्रगिरि पर्वत के शिलालेख नं० ६१ (१३६) में जो “वीरगलु" के नाम से प्रसिद्ध है उसमें गंग नरेश रक्कसयणि के वीर योद्धा "वद्देग(विद्याधर) और उनकी पत्नी "सावियव्वे" का परिचय दिया हुआ है । यह वीर नारी अपने पति के साथ “वागेयूर" के युद्ध में गई थी और वहाँ शत्रु से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुई थी। लेख के ऊपर जो चित्र उत्कीर्ण है, उसमें वह घोड़े पर सवार है और हाथ में तलवार लिए हुए हाथी पर सवार किसी पुरुष का सामना कर रही है । ___ नारी की भूमिका : विश्व-शान्ति के संदर्भ में : डॉ० कुमारी मालती जैन | २६७
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy