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________________ HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHIL I साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ है तो तुम्हारे परिवार में शांति रहेगी, यदि तुम्हारे परिवार में शांति है तो राष्ट्र में सुव्यवस्था होगी और यदि राष्ट्र में सुव्यवस्था है तो सम्पूर्ण विश्व में शांति और सुख का साम्राज्य होगा।" देश में एक समय आया जबकि नारी पर असीमित प्रतिबन्ध लग गये, उनका पर्दे में रहना आवश्यक हो गया, केवल यही नहीं जो महिलायें घर से बाहर निकलतीं उनके सम्बन्ध में उनकी निम्न सामाजिक स्थिति का अनुमान किया जाता था। नारी शिक्षा समाप्तप्राय थी। नारी की इस दुरवस्था का प्रारम्भ कब हुआ ? यह कहना मुश्किल है। कुछ लोग देश में मुस्लिम आक्रमण के पश्चात् से इसका प्रारम्भ मानते हैं । जो भी हो, किन्तु यह एक वास्तविकता थी। स्थिति केवल यहीं तक नहीं थी अपितु नारी को मारा-पीटा, अपमानित किया जाता था। इसी कारण स्व० राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने नारी की स्थिति का चित्रण निम्न शब्दों में किया था : अबला जीवन, हाय तुम्हारी यही कहानी। आँचल में है दूध, और आँखों में पानी ॥ समय के परिवर्तन के साथ उपरोक्त स्थिति में परिवर्तन आया । नारी ने अंगड़ाई ली, जागरण हुआ । उर्दू के एक कवि ने कहा था “फर्ज औरत पर नहीं है, चार दीवारी की कैद । हो अगर जब्ते नजर की और खुद्दारी की कैद ।। ___ अब तो नारी भी पुरुष के समकक्ष होकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अग्रसर है। उसमें से पुरुष से निम्न स्थिति के होने का भाव समाप्त होता जा रहा है। हालांकि जैन परम्परा में नारी पर धार्मिक उपासना, साधना आदि पर कभी कोई प्रतिबन्ध नहीं रहा जैसा कि उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है किन्तु व्यवहार में जैन परिवारों में भी नारी के प्रति समान व्यवहार कम देखने में आता था। धर्म के क्षेत्र में समान रूप से अपनी उपासना या साधना में भाग ले सकने के बावजूद भी घरों में समानता का व्यवहार नहीं होता था । जैसा कि ऊपर बताया गया है कि भगवान पार्श्वनाथ के काल में भी साधना के लिये महिलाएँ साध्वी दीक्षा ग्रहण करती थीं। भगवान महावीर के काल में महासती चन्दनबाला के पूर्व जीवन का वृत्त बताता है कि उसको बाजार में विक्रय किया गया था। यह सामाजिक विकृति का परिणाम था। भगवान महावीर ने चंदनबाला का उद्धार किया, उसके हाथ से भिक्षा ग्रहण की तथा उपयुक्त समय पर साध्वी दीक्षा प्रदान करके अपने विशाल संघ की प्रमुख नेत्री बनाया। भगवान पार्श्वनाथ तथा भगवान महावीर के संघ में साध्वियों की संख्या बहुत थी। इतने विशाल संघ का नेतृत्व साध्वी को सौंपा जाना उनकी विद्वत्ता तथा कार्यक्षमता का स्पष्ट प्रमाण है। अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के संघ में साध्वियों की उपेक्षा उनके निर्वाण के कितने समय पश्चात् प्रारम्भ हई तथा उसके क्या कारण थे? इन प्रश्नों के संबंध में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है । भगवान के निर्वाण के पश्चात् तथाकथित कुछ ग्रन्थों में जो प्रावधान किये गये पूरिस-जेट्ठा आदि वाक्य का उदाहरण दिया जा सकता है इस प्रकार के प्रावधान से जहाँ साधु समुदाय में साध्वियों के प्रति निम्न स्थिति का भाव आया वहीं साध्वियों में हीनत्व की भावना जागृत हुई और साधु समुदाय ने उस हीनत्व भाव को स्थायी रूप देने का प्रयत्न किया । गत कुछ वर्षों में साध्वी समुदाय में भी पुनर्जागरण का भाव जगा है और उसी के परिणामस्वरूप सन् १९६४ में अधिकारी मुनि सम्मेलन के समय से या उसके कुछ पूर्व से "चन्दनबाला श्रमणी संघ' की स्थापना हुई है जिसकी अध्यक्षा तपोमूर्ति परम विदुषी महासती सोहनकुंवरजी थी। २५८ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान H+team
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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