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________________ दुसाध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ MINOPHINDImathviantHANAMROSAROKARRAONagar राष्ट्र एवं समाज के प्रति वफादार बनेगा। वह ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, कृत्रिमता के वातावरण से दूर हटेगा एवं लोक कल्याण की भावना का विकास होगा। मद्य, मांस आदि व्यसनों से दूर नहीं रहेगा तब तक उसमें अहिंसा की भावना का विकास नहीं हो सकता। लोगों को यह शिक्षा देनी पड़ेगी। चोरी नहीं करनी चाहिए। इससे मन दूषित होता है तथा अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। शराव नहीं पीना चाहिए । इसके पीने से बुद्धि नष्ट होती है। शरीर काम-वासनाओं से युक्त हो जाता है । बीमारियां फैलती हैं, धन का अपव्यय होता है । जुआ खेलने से आदर्म बर्वाद हो जाता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा गिरती है। पर-स्त्री रमण करने वालों को सरे बाजार अपमानित किया जाता है। उसके परिवार एवं समाज पर क-प्रभाव पड़ता है। शिकार से जीवों का वध होता है, जीव हिंसा की ओर अग्रसर होता है। इसी बात को समणसूत्त में समझाया गया है . सव्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविउं न मरिज्जिउं । तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयंति णं ।।। उपर्युक्त विवेचन का सार यही है कि अहिंसा को हम तभी जीवन में उतार सकेंगे जब हम सभी में सहिष्णुता, विश्वबन्धुत्त्व, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, दया, दान, नम्रता, अपरिग्रह की भावना पैदा हो । हम सभी मान, माया, लोभ, क्रोध आदि कषायों से दूर रहते हुए चरित्र का विकास करें। इसलिए प्रारम्भ से ही बच्चों में नैतिक शिक्षा का होना आवश्यक है। ताकि भावी पीढ़ी सुसंस्कारित हो सके । बच्चों को बचपन से ही यह भी शिक्षा मिलनी चाहिए । कम नहीं तोलें, चोरी नहीं करें, मिलावट नहीं करें, लेन-देन के बाँट, तराजू, गज, मोटर सभी सही रखें, बच्चों को शराब, मांस आदि अन्य कुप्रवृत्तियों से दूर रखना चाहिए एवं बुराइयों का ज्ञान भी समय-समय पर कराना चाहिए। यदि हम बच्चों को आध्यात्मिक संस्कार में डालेंगे तब संभव हो सकता है कि विकृतियाँ उनमें नहीं दिखाई दें तथा आगे जाकर महान् पूरुप बन्न सकें। 1 वही, गा० नं. 55। आज के जीवन में अहिंसा का महत्त्व : डॉ० हकमचन्द जीन । २२२
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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