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________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ । ALLLLLLLUMITHILLY जहाँ तक श्रमण संस्कृतिप्रसूत धर्म और दर्शन का प्रश्न है, वे यहां वैदिक मान्यताओं जितने बिकसित एवं विस्तृत तो नहीं हो पाये किन्तु इतने वे नगण्य भी नहीं रहे कि राजस्थान के सांस्कृतिक एवं धार्मिक मूल्यों का अंकन करते हुए उनकी उपेक्षा की जा सके। संख्या की दृष्टि से अल्पतर होने हुए भी श्रमण संस्कृति के विशिष्ट मूल्यों, धर्मों और दार्शनिक अवधारणाओं ने राजस्थान में न केवल अपना विशिष्ट स्थान बनाया अपितु समय-समय पर इन्होंने यहाँ के जन-जीवन को प्रभावित भी किया। श्रमण संस्कृति की अंगीभूत मुख्य शाखाएँ जैन और बौद्ध हैं। जहां तक बौद्ध शाखा का प्रश्न है उसका राजस्थान में कितनी दूर तक अस्तित्व रहा, यह एक अलग गवेषणा का विषय है। श्रमण संस्कृति की अंगीभूत दूसरी शाखा जैन का अस्तित्व राजस्थान में नवीनतम शोधों के अनुसार प्राचीनतम होता जा रहा है । चित्तौड़ के पास “मज्झमिका" नामक प्राचीन नगरी के ध्वंशावशेष प्राप्त हुए हैं यह नगरी महाभारत काल में बड़ी प्रसिद्ध रही। जैन धर्म का भी यह केन्द्र स्वरूप थी। ... काल के विकराल थपेड़ों के बावजूद जैन संस्कृति राजस्थान में अपने आदिकाल से अब तक फलती-फूलती और विकसित होती रही। हजारों मन्दिर, स्थानक, सभागार, विशाल साहित्य, शास्त्र भण्डार आदि न केवल आज भी राजस्थान के कोने-कोने में उपलब्ध हैं अपितु वे जैन संस्कृति को पल्लवित पुष्पित करने में भी संलग्न हैं। राजस्थान में जैनधर्म के विस्तार और गौरवान्विति का अधिकतर श्रेय राजस्थान के उन गौरवशाली आचार्यों को जाता है जिन्होंने समन्वयात्मक दृष्टि, मानवीय योग्यता एवं क्षेत्रीय परिस्थितियों को मने रखकर न केवल विशाल साहित्य की रचना की, संस्थानों का निर्माण कराया अपितु अपने उपदेशों के द्वारा जन-जन को जिनशासन की तरफ आकर्षित किया। भगवान आदिनाथ से महावीर पर्यन्त २४ (चौबीस) तीर्थंकर जैनधर्म में पूज्य परमात्मा माने जाते हैं। उनमें से कतिपय तीर्थंकरों ने राजस्थान में विचरण किया है । ऐसा जैन कथा सूत्रों से प्रमाणित होता है। भगवान महावीर का दशार्णपुर (मन्दसौर) आना और दशार्णभद्र को प्रतिबोधित करना तो विश्रुत है ही। __ मन्दसौर वर्तमान व्यवस्थाओं के अनुसार मध्य भारत का अंग अवश्य है किन्तु मेवाड़ का इतिहास देखने से ज्ञात होता है कि यह अनेक वर्षों तक मेवाड़ का अंग रहा। महावीरोत्तर काल से लेकर विक्रमी दशवीं शताब्दी तक के समय में राजस्थान में ऐसे अनेक प्रभावक आचार्य और मुनि हो गये हैं जिन्होंने जिनशासन को उन्नति के शिखर तक पहुँचाया तथा अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित किये। सिद्धसेन दिवाकर, ऐलाचार्य वीरसेन, पद्मनन्दी (प्रथम), साध्वीरत्न 1. मेवाड़ और जैनधर्म-लवन्तम्हि महता, श्री आ० पू० प्र० श्री अ० १० ग्रन्थ । २१२ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक सम्पदा HEAL www.jainelibra
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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