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________________ ● साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ श्वेताम्बर समुदायों में यह पर्व वर्ष में दो बार ही मनाया जाता है । चैत्र आसोज में सप्तमी से पूर्णिमा तक नौ दिन आयंबिल तप की साधना की जाती है । आयंम्बिल तप का अर्थ अभिप्राय हैआम्लरस से रहित भोजन जिसमें रस, गंध, स्वाद, घृत, दुग्ध, छाछ आदि का सेवन नहीं किया जाता है । दरअसल यह अस्वाद - साधना का महापर्व है । इससे जीवन में तप और संयम के संस्कार जाग्रत होते हैं । श्रुत पंचमी पंचमी कार्तिक शुक्ला पंचमी को मनाई जाती है। इस अवसर पर श्रुताराधना और श्रुतज्ञान के प्रति अटूट निष्ठा तथा विनय प्रकट करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है । दिगम्बर परम्परा में मान्यता है कि धीरे-धीरे अंग ज्ञान लुप्त हो गया तो अंगों और पर्वों के एक देश के ज्ञाता आचार्य धरसेन हुए । उनकी प्रेरणा से उनके पास दो मुनिराज पधारे जिन्हें सिद्धान्त पढ़ाया और पारंगत किया । इन मुनिराजों के नाम थे पुष्पदंत और भूतबलि । इन द्वय मुनियों ने एक सिद्धान्त ग्रंथराज की रचना की जिसका नाम था षट्खण्डागम । आचार्य भूतबलि ने ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को चतुविध संघ के साथ इस ग्रंथराज की पूजा की। यह पर्व सभी से मनाया जाने लगा है । श्वेताम्बर समुदाय में यह पर्वराज कार्तिक शुक्ला पंचमी को मनाया जाता है जिसे ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। ग्रंथों की पूजा-अर्चना के साथ उनकी सफाई व्यवस्था पर पूरा ध्यान दिया जाता है । इस पर्व से दोनों ही समुदाय में स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त होती है । महावीर जयन्ती चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महाश्रमण भगवान् महावीर की जन्म जयन्ती के रूप में महोत्सव श्वेताम्बर और दिगम्बर समुदाय में बड़े हर्ष - उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर आम सभाएँ आयोजित की जाती हैं जिसमें अधिकारी जैन- जैनेतर विद्वानों द्वारा तीर्थंकर महावीर भगवान् के उपदेश का विवेचन किया जाता है तथा आधुनिक संदर्भों से उनकी उपयोगिता पर विचार किया जाता है । आज के जीवन में अहिंसा और अनेकान्त के द्वारा ही अमन चैन की कल्पना साकार हो सकती है । यह धारणा केवल जैनों की ही नहीं है । विश्व के महान विचारकों और साधकों की धारणा है । उल्लेखनीय बात यह है कि इस दिन पूरे देश में राजकीय आज्ञा में अवकाश तो रहता ही है साथ ही सारे कट्टीखाने तथा मांस की दुकानों को बन्द कर दिया जाता है । प्रभात फेरियां तथा मिष्ठान वितरण कर हर्ष मनाया जाता है । बहुत से स्थानों पर हस्पतालों में रोगियों को फल तथा कालिज के छात्रों में मिष्ठान वितरण भी कराया जाता है। जैन भाइयों के व्यापारिक संस्थान प्रायः बन्द रहा करते हैं । दीपावलि श्वेताम्बर और दिगम्बर समुदाय में महावर्व दीपावलि का आयोजन तीर्थंकर महावीर के निर्वाण हो जाने पर मनाया जाता है । आगमों और पुराणों इसका विस्तारपूर्वक उल्लेख उपलब्ध है । महाश्रमण महावीर के निर्वाण के समय नव लिच्छवि और नव मल्लि राजाओं ने प्रोषधव्रत कर रखा था । कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन रात्रि के समय भगवान मुक्ति को प्राप्त हुए। उस समय राजाओं ने आध्यात्मिक ज्ञान के सूर्य महावीर के अभाव में रत्नों के प्रकाश से उस स्थान को आलोकित किया था । जैन पर्व और उसकी सामाजिक उपयोगिता: कुँवर परितोष प्रचंडिया | २०७ www.
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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