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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiLEERBELHARELI iiiiiiiiiiiiiiiiiiiHPERH मांस-भक्षण करना उसका स्वभाव कभी नहीं रहा । मानव मूलतया एक उपकार वृत्ति वाला प्राणी है। उसके पास विवेक है, सोचने-समझने की शक्ति है। वध के समय जीव कैसा आर्तनाद करता है, कितना छटपटाता है, उसे कितनी पीड़ा होती है-यह देखकर पाषाणों का हृदय भी पिघल जाना चाहिए। फिर मनुष्य तो मूलतः दयावान प्राणी है, अहिंसा उसका भूल भाव है। __ अहिंसा का समर्थन प्रत्येक धर्म में किसी न किसी रूप में किया ही गया है । जैन धर्म तो अहिंसा पर ही आधारित है, इसलिए सर्वांग श्रेष्ठ है । देखिए १. आपात में अल्लाहताला ने कहा था-रक्त और मांस मुझे सहन नहीं होता। अतः इससे परहेज करो। - इस्लाम धर्म २. तुम मेरे पास सदैव एक पवित्रात्मा रहोगे बशर्ते कि तुम किसी का मांस न खाओ। -बाईबिल ३. जो व्यक्ति मांस, मछली और शराब आदि सेवन करते हैं, उनका धर्म, कर्म, जप-तप सब कुछ नष्ट हो जाता है। ४. मांस खाने से कोढ़ जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं । शरीर में खतरनाक कीड़े व जन्तु पैदा हो जाते हैं । अतः मांसभक्षण का त्याग करो। - महात्मा बुद्ध (लंकावतार सूत्र) ५. बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल । जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल । -कबीरदास ६. मैं मर जाना पसन्द करूगा लेकिन मांस खाना नहीं। -महात्मा गांधी ७. जो गल काटे और का, अपना रहे बढ़ाय । धीरे-धीरे नानका, बदला कहीं न जाय ।। -नानकदेव उपरोक्त कतिपय कथन-उद्धरण इतना स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं कि मानव को किसी भी रूप में हिंसा से दूर रहना चाहिए तथा अहिंसक बनना चाहिए। एक अहिंसक व्यक्ति में कितनी आत्म श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है इसका एक छोटा सा उदाहरण हम अपने पाठकों के विचार हेतु यहाँ प्रस्तुत करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते, क्योंकि उसमें पाठकों का हित निहित है अहिंसा में पूर्ण श्रद्धा रखने वाली एक महिला थी। चाहे प्राण चले जायँ, किन्तु वह अपने जानते हिंसा का आचरण कभी नहीं करती थी। एक दिन एक भयानक सर्प घर की नाली में घुस आया । उसकी विषैली फुफकार से घर के लोग भयभीत हो गए। किसी भी क्षण वह किसी को डस सकता था और उसकी मृत्यु निश्चित हो जाती। आस-पास के लोग इकटठे हो गए। लाठियाँ लेकर वे उस सर्प को मार डालने के लिए उद्यत थे। किन्तु जब उस महिला को परिस्थिति का ज्ञान हआ तब वह दौड़ी-दौड़ी वहाँ आई और बड़ी आत्म श्रद्धा तथा दयाभाव से बोली-“भाईयो, आप लोग इस सर्प को न मारें । मैं इसे जंगल में छोड़ आऊँगी।" लोग विस्मित हुए कि ऐसा कैसे सम्भव है ? किन्तु वे ठहर गए । महिला ने एक लाठी का छोर उस नाली के पास रखकर कहा-“हे नागराज! ये लोग लाठियों से पीट-पीट कर आपको अभी मार डालेंगे । अतः आइये, आप इस लाठी पर बैठ जाइये, मैं आपको जंगल में छोड़ आऊँगी।" अहिंसा : वर्तमान सन्दर्भ में : मदन मुनि 'पथिक' | १६७
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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