SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ । जैन दर्शन स्याद्वाद सिद्धांत की दृष्टि से प्रत्येक पदार्थ को अनेक धर्मात्मक मानता है। इस सिद्धांत के अनुसार पदार्थ को नित्य व अनित्य दोनों कहा जा सकता है । द्रव्य की दृष्टि से पदार्थ नित्य है। क्योंकि पदार्थ से द्रव्यता का गुण कभी भी अलग नहीं किया जा सकता। वह सभी अवस्थाओं में द्रव्य ही कहलाता है। किन्तु पर्याय की दृष्टि से पदार्थ अनित्य है। क्योंकि पर्याय उत्पाद, स्थिरशील व विनाश-युक्त है। जैसे घड़े का विनाश हो जाने पर भी वह मिट्टी के रूप द्रव्य ही कहा जाता है, उसकी मात्र पर्याय का ही विनाश होता है।' जैन धर्म एवं दर्शन के विभिन्न सिद्धान्तों के विवेचन के साथ-साथ वैदिक दर्शन के पशु-बलि के हिंसात्मक स्वरूप की, चार्वाक दर्शन को 'तत्व मीमांसा एवं प्रत्यक्ष ही प्रमाण है' की, बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद, नैरात्म्यवाद, शून्यवाद तथा सांख्य दर्शन के प्रकृति तथा पुरुष के सम्बन्ध की समीक्षा की है। इसके अतिरिक्त योग, वैशेषिक, शैव, मीमांसा आदि दर्शनों की समीक्षा प्राप्त होती है। आत्मा के स्वरूप, जीव की मुक्ति एवं सृष्टि कर्ता से सम्बन्धित विभिन्न दर्शनों की मान्यताओं के खण्डन किया गया है। वैदिक दर्शन कवि ने वैदिक दर्शन की मान्यताओं की समीक्षा पशु-बलि के सन्दर्भ में की है। यशोधर जैन धर्म में श्रद्धा रखता है और उसकी माता ब्राह्मण धर्म में । इसीलिए ग्रंथ के चतुर्थ आश्वास में कवि ने माता चन्द्रमति द्वारा वैदिकी-हिंसा का समर्थन, तथा राजा यशोधर द्वारा अनेक जैनेतर शास्त्रों के उद्धरणों से जीव-हिंसा व मांस-भक्षण का विरोध प्रस्तुत करवाया गया है। चन्द्रमति माता स्वप्न की शांति का उपाय बताती हुई कहती है कि-'कुलदेवता के लिये समस्त प्राणी वर्गों की बलि करने से स्वप्न की शान्ति हो जाती है । क्योंकि कुलदेवता के लिए प्राणियों की बलि का विधान सदा से प्रचलित हुआ, चला आ रहा है । जो लोक प्रसिद्ध है। इस बात की पुष्टि करती हुई यशोधर की माता कहती है कि–'अतिथि सत्कार के लिए (मधुपर्क), श्राद्धकर्म के लिए (पितृकर्म), अश्वमेध आदि यज्ञ के लिए (यागकर्म), तथा रुद्र आदि की पूजा, इन चार कार्यों में जो पशु का घात करता है वह अपनी आत्मा को तथा बलि किये गये पशुओं को उत्तम गति में ले जाता है। ऐसा मनु नाम के ऋषि ने कह यशोधर उक्त वैदिकी हिंसा का निरसन करते हुए (अहिंसा धर्म की स्थापना) कहता है कि-हे माता, यद्यपि स्वप्न की शान्ति प्राणियों की बलि से हो भी जाये किन्तु प्राणी-हिंसा के कारण यह कार्य कल्याण-कारक नहीं है।' निश्चय से प्राणियों की रक्षा करना क्षत्रिय राजकुमारों का श्रेष्ठ धर्म है। किन्तु वह धर्म प्राणी हिंसा से नष्ट हो जाता है । जिस प्रकार प्राणी अपने शरीर के लिए दुःख नहीं देना चाहते उसी प्रकार दूसरे प्राणियों को भी दुःख नहीं देना चाहिए। अथवा जिस तरह सभी प्राणियों के ना जीवन प्यारा है उसी प्रकार दूसरे (जीवों) को भी अपना जीवन प्यारा है, इसलिए जीव-हिंसा नहीं करनी चाहिए।' 1. वही, 6/105/205 3. वही, 4/42, 43/50 5. वही, 4/54/53 7. वही, 7/23/299 2. यशस्तिलक दीपिका, 4/41/50 4. वही, 4/52/53 6. वही, 4/58/54 १८४ | चतुर्थ खण्ड : जैन दर्शन, इतिहास और साहित्य ....... www.jainelibrar
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy