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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ iiiiiiii रहीं। उन्होंने अनेक शिष्य तैयार किये । इनमें क्लाउस बन, १९६६ से ही बलिन के फ्राइ विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य कर रहे हैं। इन पंक्तियों के लेखक को बलिन में प्रोफेसर ब्र न से साक्षात्कार करने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने शीलांक के 'चउप्पन्न महापूरिस-चरिय' का सम्पादन (१९५४) किया है। उनका दूसरा उल्लेखनीय कार्य है आवश्यक का विस्तृत अध्ययन जो 'आवश्यक स्टडीज १' नाम से 'जैनधर्म एवं बौद्धधर्म का अध्ययन' नामक आल्सडोर्फ अभिनन्दन ग्रन्थ (१९८१) में ३८ पृष्ठों (११-४६) में प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने सहयोगी प्रोफेसर चन्द्रभाल त्रिपाठी के साथ मिलकर अन्ट वाल्डश्मित के ८०वें जन्म दिवस पर प्रकाशित उनके अभिनन्दन ग्रंथ में 'जैन शब्दाक्रमणिका एवं भाष्य शब्दानुक्रमणिका' नामक लेख प्रकाशित किया है (बलिन, १९७७)। प्रोफेसर एडेलहाइड मेट्टे आल्सडोर्फ की एक अन्य विदुषी शिष्या हैं जो आजकल म्यूनिक विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या-विभाग में कार्य रही हैं। ओघनियुक्ति पर इन्होंने कार्य किया है। समयसमय पर जर्मन पत्रिकाओं में इनके शोधपूर्ण निबन्ध प्रकाशित होते रहते हैं । इनका एक विद्वत्तापूर्ण निबन्ध उक्त आल्सडोर्फ अभिनन्दन ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है जिसमें बृहत्कल्प भाष्य (१. ११५७-११५८) की कथा की बौद्धों के मूसिक जातक से तुलना करते हुए, बृहत्कल्प भाष्य की उक्त गाथाओं की प्राचीनता पर प्रकाश डाला गया है । इन पंक्तियों के लेखक को अपनी म्यूनिक-यात्रा के समय श्रीमती मेट्टे से भेंट करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस प्रसंग पर बलिन की फ्राई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्लाउस ब्रून के सहयोगी प्रोफेसर चन्द्रभाल त्रिपाठी के नाम का उल्लेख कर देना आवश्यक है जिन्होंने स्ट्रासबर्ग की लाइब्रेरी में उपलब्ध जैन पांडुलिपियों पर उत्पन्न महत्वपूर्ण शोध कार्य किया है। उनकी यह कैटेलोग ऑव द जैन मैनुस्क्रिप्ट्स ऐट स्ट्रासबर्ग' नामक महत्वपूर्ण कृति भूमिका, परिशिष्ट, प्लेट्स और मानचित्र के साथ लाइडन (हालैण्ड) से १६७५ में प्रकाशित हुई। जर्मनी के अन्य विद्वानों में पंचतंत्र के सुप्रसिद्ध सम्पादक और प्राकृत जैन साहित्य के विशिष्ट अध्येता तथा 'द लिटरेचर ऑव श्वेताम्बर जैन्स ऑव गुजरात' (१९२२) ने लेखक जोआनेस हर्टल (१८७२-१९५५), 'महावीर तथा बुद्ध कालीन भारतीय दर्शन' (१६०२) के लेखक फ्रीडरिख ओटो श्राडेर, गुइटिंगन विश्वविद्यालय में बौद्ध एवं जैन विद्या के विद्वान् गुस्ताफ रॉथ, और 'राजा नमि की प्रव्रज्या' (१९७६) के जर्मन भाषान्तरकार, जर्मन गणतन्त्र में हाम्बोल्ट विश्वविद्यालय, वलिन में प्राकृत के विद्वान् बोल्फ गांग मौरगेन रॉथ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। विदेश के अन्य विद्वानों में अमरीका के नार्मन ब्राउन, अर्नेस्ट बेण्डर, चेकोस्लोवाकिया के मौरिस विण्टरनीत्स, स्वीडन के जाल शाण्टियर, बेल्जियम के द' ल्यू, फ्रांस की मैडम क' या (Callat) आदि के नाम गिनाये जा सकते हैं। विस्तार भय से इस लेख में उनके एवं उनकी रचनाओं के सम्बन्ध में कुछ कहना सम्भव नहीं। ..... . अनुसन्धान की कार्य-प्रणाली विदेशी जैन विद्वानों के सन्दर्भ में : डॉ० जगदीशचन्द्र जैन | १८१ ...........
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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