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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ धर्म के लक्षण किसी भी वस्तु के स्वभाव की पहचान उसके बाह्य लक्षणों से होती है । धर्म के भी विभिन्न लक्षण विभिन्न महापुरुषों ने बताए हैं। जैन दर्शन में वह क्षमा, मार्दव, आर्जव ( सरलता ), सत्य, संयम, तप, त्याग, निर्लोभता, लघुता और ब्रह्मचर्य - इन दशलक्षणरूप है । तो मनुस्मृति में धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध - इन दशलक्षणरूप है । श्रीमद्भागवत में धर्म के ३० लक्षण गिनाये गये हैं, जो उक्त दश लक्षणों का ही विस्तार माने जा सकते हैं । संख्या कुछ भी हो, आशय यह है कि धर्म सम्मान्य सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक जीवन जीने की एक पद्धति है, कला है, उच्चतम नियमों की पारिभाषिक संज्ञा है । विज्ञान विशिष्टं ज्ञानं विज्ञानम् - विशेष ज्ञान को विज्ञान कहते हैं । धर्मशास्त्रों में भी ज्ञान से अगली श्रेणी 'विज्ञान' की मानी गयी है । लेकिन भाषा विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए, तो 'विज्ञान' के इस अर्थ में परिवर्तन आ गया है । धर्मशास्त्र - मान्य विज्ञान आत्मा को आत्मा के द्वारा होनेवाला विशेषज्ञान है । जबकि आधुनिक विज्ञान (Sc ence) प्रयोगशाला में विभिन्न परीक्षणों से प्राप्त निर्णयात्मक ज्ञान है । कर्ता यहा भी आत्मा ही है, कारण में अन्तर है । विज्ञान के ये निर्णय बदलते भी रहते हैं, जबकि आत्मा की प्रयोगशाला में महावीर द्वारा प्राप्त निर्णय २५०० सालों से विज्ञान के लिए चुनौती बने हुए हैं। साथ ही विज्ञान के प्रकाश में वे सिद्धान्त शुद्ध स्वर्ण के समान और अधिक चमक भी उठे हैं । उदाहरण के लिए पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति ( पाँच स्थावर ) की सजीवता कुछ समय पूर्व तक महावीर की एक मनगढ़न्त कल्पना मानी जाती थी, लेकिन आज विज्ञान ने इसे सत्य सिद्ध कर दिया है । श्री एच. टी. बर्सटापेन, सुगाते, बेल्मेन आदि वैज्ञानिकों के अनुसार बालक की वृद्धि के समान पर्वत भी धीरे-धीरे बढ़ते हैं और एक दिन ऐसा भी आता है कि क्रमशः वृद्धावस्था प्राप्त ये पर्वत धराशायी हो जाते हैं, जमीन में धंस जाते हैं । अग्नि भी मनुष्य की भाँति ओक्सीजन (Oxygen) पर जिन्दा रहती है । पानी और वायु के विविध प्रकार के रूप, रंग, स्पर्श, आवाज और तापमान आदि से सिद्ध है कि ये भी सजीव हैं । भोजन, पानी, श्वास-प्रश्वास, लाज, संकोच, हर्ष, क्रोध, वृणा, प्रेम, आलिंगन, परिग्रहवृत्ति, सामिष भोजन, निरामिष भोजन, सोना, जागना आदि क्रियाओं से वनस्पति की सजीवता तो बहुत अच्छी तरह से सिद्ध हो चुकी है। सूडान और वेस्टइंडीज में एक ऐसा वृक्ष मिला है, जिसमें से दिन में विविध प्रकार की राग-रागिनियाँ निकलती हैं और रात में ऐसा रोना-धोना प्रारंभ होता है मानो परिवार के सब सदस्य किसी की मृत्यु पर बैठे रो रहे हों।" हवा में भी ऐसी शुभाशुभ आवाजें प्रायः सभी ने सुनी होंगीं। इसका अनुभव मैंने भी प्राप्त किया है । अतः सिद्ध है कि पाँचों स्थावर सजीव हैं । दूसरा उदाहरण – पहले विज्ञान आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास ही नहीं करता था, जब 1. समवायांग, 10 3. श्रीमद्भागवत्, 7/11/8-12 5. मुनिश्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, अ० 2, पृ० 331. 6. वही, पृ० 331 2. मनुस्मृति, 6/92 4. सवणे णाणे य विष्णाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । स्थानांग, 10 धर्म और विज्ञान : साध्वी मन्जुश्री | १५७ www.
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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