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________________ FIEसाकारत्न पुष्पवता आमनन्दन ग्रन्थ ::: iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiitititififinitififtttttithilitifinitiirE GOOG ७. मित्रता तभी होती है, जब दिल में पार- ११. दिमाग में विचारों की भीड़ इकट्ठी हो दर्शिता हो, सरलता हो, विश्वास हो । (पृष्ठ-६७) जाना या निरर्थक विचार ठूस लेना भो परिग्रह है । ८. देह मर सकता है, मगर मंत्रो नहीं, क्योंकि कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि साध्वी वह तो देहातीत आत्मा के साथ होती है। जी की प्रवचन-कला चित्त के मनोरंजन के लिए (पृष्ठ-६७) न होकर चित्त की निर्मलता के लिए है। सच्चे ६. जो व्यक्ति भय और स्वार्थ, लोभ और अर्थों में वह धर्मकला है, क्योंकि उसका मूल लक्ष्य दबाव से सच बोलता है तो वह सच बोलना सत्य विभाव से स्वभाव में आना है। साध्वी श्री जी के की परछाई मात्र है। (पृष्ठ-१०१) प्रवचनों में साधना का बल, चिन्तन की ताजगो १०. सत्य को सजाने से सत्य निर्विकार नहीं और लोक संग्रही दृष्टि है। रहता, उसमें विकार आ जाता है। (पृष्ठ-१०५) 66666666 पण्डित कौन ? पण्डित कौन ? क्या जिसने शब्द शास्त्र के अनेक रूप, सूक्तियाँ और चाटूक्तियों का 6 पाठ कर रखा है, वह पण्डित है ? क्या जिसने ब्राह्मण कुल में जन्मधारण किया, वह पण्डित है ? क्या जिसने शिर पर तिलक आदि लगा रखा हो, और विद्वानों की पंक्ति में नाम लिखवा लिया हो वह पण्डित है ? नहीं ! नहीं !! पण्डित की व्याख्या करते हुए भगवान महावीर ने कहा है जो आरम्भ-हिंसा, वैर विरोध, क्लेश एवं दोष से उपरत अर्थात् मुक्त है, वही पंडित है, तथागत बुद्ध ने पण्डित की परिभाषा की है-- बहुत अधिक बोलने से कोई पण्डित नहीं होता, वास्तव में जो क्षमाशील, वैर रहित और सदा निर्भय है, वही पण्डित कहलाता है, इसीप्रकार का भाव महाभारतकार व्यास ने व्यक्त किया है सर्दी-गर्मी, भय और अनुराग, सम्पत्ति और दरिद्रता जिसके कार्य में विघ्न नहीं डालते वही व्यक्ति पण्डित कहलाता है, __ और कबीरदास तो पण्डित की परिभाषा में बिल्कुल दो टूक बात ही कह गए “पण्डित की इन बहुविध परिभाषाओं का निचोड़ मेरे अनुभव ने यों प्रस्तुत किया है जो वैर-विरोध से मुक्त होकर, सर्वत्र बरुणा, स्नेह एवं ली सद्भाव का अमृत वर्षाता हआ अभय एवं अदीन भाव से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहे वही सच्चा पण्डित है, उपाचार्य देवेन्द्र मुनि शास्त्री 6666666 ETEFITRIFIERRRRRRRRRRRRRR 66666666 साध्वी रत्न श्री पुष्पवतीजी की प्रवचन शैली | २५५ HEREHE www.laine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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