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________________ D ILDO I LUID .... ..... .. साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ स्वप्न उनके जीवन काल में साकार नहीं हो पायेगा। नवंबर १९८३ को नासिक में हृदय-गति रुक जाने से यकायक उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी प्रबल प्ररणा थी कि दशवकालिक के अभिनव संस्करण क सम्पादन मेरी ज्येष्ठ भगिनी परमविदूषी महासतीजी श्री पुष्पवतीजी करें। बहिन जी महाराज को भी सम्पादन-कार्य में पूजनीया मातेश्वरी महाराज के स्वर्गवास से व्यवधान उपस्थित हुआ जिसके कारण न चाहते हुए भी इस कार्य में काफी विलम्ब हो गया। युवाचार्यश्री इस आगम के सम्पादनकार्य को नहीं देख सके। दशवैकालिक का मूल पाठ प्राचीन प्रतियों के आधार से विशुद्ध रूप से देने का प्रयास किया गया है । मूल पाठ के साथ हिन्दी में भावानुवाद भी दिया गया है। आगमों के गम्भीर रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए सक्षेप में विदेचन भी लिखा है । विवेचन में नियुक्ति, चूणि, टीका और अन्यान्य आगमों का उपयोग किया गया है। यह विवेचन सारगर्भित, सरल और सरस हुआ है। कई अज्ञात तथ्यों को इस विवेचन में उद्घाटित किया गया है। अनुवाद और विवेचन की भाषा सरल, सुबोध और सरस है । शैली चित्ताकर्षक और मोहक है। बहिन जी महाराज की विलक्षण प्रतिभा का यत्र-तत्र संदर्शन होता है। यद्यपि उन्होंने आगम का सम्पादनकार्य सर्वप्रथम किया है तदपि वे इस कार्य में पूर्ण सफल रही हैं। यह विवेचन हर दृष्टि से मौलिक है। मुझे आशा ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि इस संस्करण का सर्वत्र समादर होगा, क्योंकि इसकी सम्पादन शैली आधुनिकतम है और गुरु गम्भीर रहस्यों को स्पष्ट करने वाली है । ग्रन्थ में अनेक परिशिष्ट भी दिए गए हैं, विशिष्ट शब्दों का अर्थ भी दिया गया है, जिससे यह संस्करण शोधार्थियों के लिए भी परम उपयोगी सिद्ध होगा............।" . . . . सूत्र का अर्थ प्राकृत भाषा में सुत्त शब्द के तीन अर्थ होते हैं--- सूत्र, श्रुत और सुप्त ! . १. सूत्र का एक अर्थ है-धागा-धागा बिखरे हुए अनेक फूलों को एक ____ माला में गूथ सकता है, इसी प्रकार सूत्र बिखरे हुए अनेक विचारों, ____ अर्थों को एक वाक्य माला में गुफित कर लेता है। सूत्र का दूसरा अर्थ है श्रत-ज्ञान ! जिस सुई में सूत्र-धागा पिरोया हुआ रहता है, वह सुई गिर जाने पर भी खोती नहीं, खो जाने पर खोज निकालना सहज होता है, उसी प्रकार सूत्र-श्रुत (ज्ञान) से युक्त आत्मा संसार की वासनाओं में भटक जाने पर भी सहजतया संभल जाता है, और आत्म-स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। ३. सूत्र का तीसरा अर्थ है-सुप्त ! सूत्र-वह है जो शब्दों की शय्या पर भावों की गहराई लिए सोया रहता है। सोये हए व्यक्ति को जगाने : पर वह प्रबुद्ध होकर कार्यरत हो जाता है, उसी प्रकार सुप्त भाव व अर्थ जिसमें छिपा रहता है, और जिसे चिंतन के द्वारा जागृत करके . अनेक प्रकार का विज्ञान प्राप्त किया जा सके वह है--सूत्र ! सत्र के तीनों अर्थों का सामंजस्य करके जीवन को आलोकमय बनाना : चाहिए। -उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी : २३८ | तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन www.jainein HD
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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