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________________ + +++ + + i n e ........ HHHHHHHHHHHHHHRRRRRRR .............. साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ 0 बालक स्नेह चाहता है। युवक बराबरी रही थी कि यदि मैं अपनी बहन से न उलझी होती का स्नेह साथी चाहता है और वृद्ध विनीत व्यक्ति तो मेरी यह दयनीय स्थिति न होती। चाहता है जो उसकी बात स्वीकार करता हो। एक किसान ने अपनी परोपकारी मनोवत्ति अतः बालक को स्नेह से जीतो, युवक को मित्रता की शेखी बघारते हए कहा-देखो बैलो ! मैं खेती से जीतो और वृद्ध को विनय से जीतो। में से कितना अल्पांश अन्न ग्रहण करता हूँ और दीपक का कार्य पथ को दिखाना है पर सारा घास तो तुम्हारे लिए छोड़ देता हूँ। पथ पर चलने का कार्य पथिक का है। शास्त्र और रंभाते हुए बैलों ने कहा-किसान बन्धु ! तुम सद्गुरु का कार्य है जीवन की वास्तविकता के संद- पक्के स्वार्थी हो। व्यर्थ की बाते बनाने से क्या र्शन करवाना किन्तु उसका आचरण करना साधक लाभ ? यह हमारा परम सौभाग्य है कि मानव का कार्य है । यदि साधक दिग्दशित मार्ग का अनु- घास नहीं खाता। यदि मानव घास खाता होता तो सरण-आचरण न करे तो उसमें सद्गुरु का क्या पशुओं को भूखे ही मरना पड़ता। दोष ? एक दिन मानव ने गाय से कहा-तू माता एक दिन मैंने छत्री से पूछा-तु इतनी तनी है। मैं तेरी सेवा करना चाहता हूँ इसलिए घर पर हई क्यों रहती है ? उसने धीरे से कहा---क्य चल । पता नहीं कि मैं अपने आपको सदा समेटे हुए गाय ने अपने सिर को हिलाते हुए कहा-त् रखती हूँ पर प्रतिपक्षियों से मुकाबला करने के लिए मेरी क्या सेवा करेगा? तू तो पक्का स्वार्थी है । तु तो बिना तने काम नहीं हो सकता । मैं सोचने मेरे बच्चों को भूखे मारकर दूध छीन लेगा। क्या यही है तेरी सेवा ? मानव निरुत्तर हो गया। लगी वस्तुतः छतरी की बात सत्य है। एक दिन झाड़ अपने विकट बन्धन से ऊब मिल दनादन चल रही थी। चिमनी ने देखा, मैं सबसे बड़ी हैं। जितनी भी मशीनें हैं वे गया और सोचने लगा कि बन्धन तो कारागृह के मेरी चरणोपासिका हैं किन्तु यह आकाश मेरे से सदृश है अतः मैं इस बन्धन से मुक्त हो जाऊँ ! और भी ऊपर है। मैं इस स्वच्छ आकाश को धुएँ से वह बन्धन से मुक्त होने के लिए छटपटाने लगा। काला बना दूंगी ताकि यह भी याद रखेगा कि ___ मालिक ने छटपटाते हुए झाड़ से कहा-तू किसी से पाला पड़ा था। बन्धन से मुक्त तो होना चाहता है पर याद रख कि। आकाश ने मंद मुस्कान बिखेरते हुए कहाबन्धन से मुक्त होने पर जो तेरी गरिमा है वह नष्ट । तू मुझे क्या काला बनायेगी ? मेरे पर तेरे धुएँ का हो जायेगी। बन्धन में बंधकर त कचरा साफ करती - कोई असर नहीं होगा पर तेरा मुंह तो अवश्य काला है पर बन्धन से मुक्त होते ही तु स्वयं कचरा बन हो जाएगा। जायेगी। ठुमक-ठुमककर पवन चल रहा था। पतंग अनन्त आकाश में पतंग उड़ान भर रही थी। अनंत आकाश को नाप रही थी। उसकी दृष्टि यका दूसरी पतंग उसकी ऊँची उड़ान नहीं देख सकी। यक डोर पर गई। उसने नफरत की निगाह से वह ईर्ष्या से जल उठी। वह उसे गिराने के लिए डोर की ओर देखा और कहा-मेरे कारण तुझे भी उससे उलझ पड़ी, पर वह स्वयं ही कटकर नीचे अनंत आकाश की यात्रा करने का सुहावना-सुअवगिर पड़ी। जो दूसरों को गिराना चाहता है उसका सर मिला है। स्वतः पतन हो जाता है। पतंग की बात सुनकर डोर कहाँ चुप बैठने गिरती हुई पतंग आँसू बहा रही थी और सोच वाली थी, उसने मुस्कराते हुए कहा-भैया ! तुमने २३० तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन 23AESAMRAKARIRAMPANCE/Y
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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