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________________ कककककककककककक ककक कककककककककककककककककक प्रेरणा का निर्भर : संस्मरण शब्दांकन -- साध्वी रत्नज्योति 442442464444446 Des संस्मरण शब्द की व्युत्पत्ति सम् + स्मृ + ल्युट (अण) से हुई है, जिसका अर्थ है सम्यक् स्मर सम्यक् शब्द का अर्थ है पूर्णरूपेण और पूर्णरूपेण का आशय है सहज आत्मीयता तथा गम्भीरता से वि व्यक्ति घटना, दृश्य, वस्तु आदि का स्मरण करना । वस्तुतः अनुभूति और स्मृति से सृजित इति संस्मरण है । संस्मरण की सबसे बड़ी विशेषता है कि लेखक अपने समय के इतिहास को सुर्त रूप देता बहुधा संस्मरण-लेखक और संस्मर्ण्य व्यक्ति दोनों महान होते हैं । वैसे जब दो समान कोटि के महा अथवा कला एवं साहित्य के महारथी संस्मरण लिखते हैं तो संस्मर्ण्य व्यक्ति के जीवन के अनेक रहस पक्ष आलोकित हो उठते हैं। साथ ही संस्मरणलेखक को स्वयं की जीवनी - अंश भी प्रकाश जाती है । संस्मरण में यथार्थ का चित्रण भावना की गहनता लिए होता है । अतएव व्यक्ति से वर्णित घटना अथवा व्यवहार की आकर्षक ढंग से प्रस्तुति उसका मुख्य ध्येय होता है । इसके माध् संस्मरण-सर्जक संस्मर्ण्य के जीवन के महनीय तथ्य का साक्षात्कार करता है जो उसके परिवेश और को भी उजागर कर देता है । संस्मर्ण्य के जीवन के जिस अंश को संस्मरण का वर्ण्य विषय बनाया है वह स्वयं प्रणेता के जीवनादर्श का सूचक - संकेत होता है संस्मरण- सृजक संस्मरण में आत्मकथा निबन्धात्मक, पत्रात्मक आदि शैली का उपयोग करता है। जिसमें एक निजीपन और आत्मीयत संस्पर्श दृष्टिगत होता है । । साध्वी रत्न सद्गुरुणीजी श्रीपुष्पवतीजी के संस्मरण अतीत को सजीव करते हैं और अपने श्र और पाठकों को जीवन के बहुविध पक्षों का साक्षात्कार कराते हैं अतएव इनमें स्वभावतया रोचकता रंजन क्षमता मुखर है । वस्तुतः साध्वीश्री के ये संस्मरण प्रेरणा के निर्झर हैं। आइए, आप भी इन्हें जीवन में आनन्द और प्रेरणा का संचार कीजिए । Jain Education International ( १ ) एक बार मैं विहार कर रही थी । यकायक मेरे पैर की नस में तनाव हो गया । मैं धी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी । कुछ राहगीर मिले | मैंने उनसे पूछा -अमुक गाँव कितना दूर है ? राहगीर बड़ी तेजी से बड़े चले जा रहे थे । उन्होंने संक्षेप में कहा- बहुत ही निकट है मैंने उन राहगीरों से पूछा- बतलाइए वहाँ पर हमारे ठहरने की उपयुक्त जगह मिल ज राहगीर ने तेजी से आगे कदम बढ़ाते हुए कहा- वहाँ एक बढ़िया स्कूल है । आप वहाँ ठहर प्रेरणा के निर्भर : संस्मरण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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