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________________ भुला नहीं सकता, जो प्रस्तुत ग्रन्थ के निदेशक रहे हैं। जिनका प्रबुद्ध चिन्तन हमारे प्रस्तुत कार्य के लिए आलोक-स्तम्भ का कार्य करता रहा है । सम्पादन एवं मुद्रण-कला की दृष्टि से ग्रन्थ को सजाने और सँवारने का महत्त्वपूर्ण दायित्व, स्नेह सौजन्यमूर्ति श्रीचन्दजी सुराना ने स्वीकार कर अपनी हार्दिक श्रद्धा अभिव्यक्त की है, सुरानाजी के श्रद्धापूर्ण श्रम से ही ग्रन्थ स्वल्प समय में मुद्रित हो सका । प्रस्तुत कार्य के लिए परम श्रद्धालु-उदारमना दानी महानुभावों ने उदारता के साथ अनुदान देकर अपनी हार्दिक भक्ति अभिव्यक्त को, तदर्थ वे साधुवाद के पात्र हैं। ज्ञात और अज्ञात रूप में जिनजिन का सहयोग प्राप्त हुआ है, वे सदा स्मृत्याकाश में चमकते रहेंगे । मैं अन्त में अपने प्रबुद्ध पाठकों से यह नम्र निवेदन करना चाहूँगा कि प्रस्तुत ग्रन्थ का स्वाध्याय कर अपने जीवन को चमकावें । श्री तिलोक रत्न स्था. जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड अहमदनगर आचार्य श्री आनन्द ऋषि दीक्षा हीरक जयन्ती दि० २६ ११-८७ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only -दिनेश मनि ७ सम्पादकीय www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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