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________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ :::::HHHHHHHHHHHHHHHHH HALLLLLLLLLLLLLL नहीं ले सकता। वह तो कर्त्तव्य से पलायन करना जानता है प्रगति नहीं। दीक्षा तो पलायन नहीं है, प्रगति है। मजिस्ट्रेट का प्रमाण पत्र मजिस्ट्रेट सुन्दरि की बात को बहुत ही ध्यान से सुन रहा था। उसने सहर्ष लिख दिया कि सुन्दरि सर्वथा सुयोग्य है। इसे दीक्षा लेने के लिए कोई भी रुकावट न डाले । सुन्दरि वह प्रमाण-पत्र लेकर अपनी माँ के पास पहुँची । आज उसका चेहरा खिला हुआ था। उसने माँ से कहा-सभी बाधाएँ अब नष्ट हो गई है । कल आप मुझे आज्ञा-पत्र लिख दें। ताकि किसी भी विरोधी को ननु नच करने का मौका ही न मिलें।" आसुरी उपद्रव मानव सोचता क्या है और होता क्या है । भावी के गर्भ में क्या छिपा है ? यह केवलज्ञानी के अतिरिक्त कोई नहीं जानता । माता, पुत्र और बेटी तीनों सोए हुए थे। माता ने एक भयंकर स्वप्न देखा। एक क्रूर दैत्य सामने खड़ा है। वह कह रहा है कि तू अपनी प्यारी बेटी को दीक्षा देना चाहती है और तेने यह संकल्प किया है कि मैं प्रातःकाल मंगल बेला में आज्ञा-पत्र लिख दूंगी। पर मेरा कथन मानकर आज्ञा-पत्र न लिखना। यदि मेरी आज्ञा की अवहेलना करेगी तो मैं तुझे ऐसा पाठ पढाऊँगा कि तु वर्षों तक कराहती रहेगी । वेदना से छटपटाती रहेगी।" स्वप्न में ही उस आसुरी शक्ति को तीजकुंवरि ने कहा-मैं आज्ञापत्र लिखूगी । अब मुझे कोई रोक नहीं सकता । मेरी लड़की जिनेन्द्र देव के मार्ग को ग्रहण करेगी। इससे बढ़कर और प्रसन्नता क्या होगी? उस आसुरी शक्ति ने अपना विकराल रूप बना कर डराने का प्रयास किया और कहा कि यदि कहना नहीं मानेगी तो कल मैं तेरे शरीर में प्रविष्ट हो कर तेरा दाहिना हाथ जला दूंगा। फिर तू किससे आज्ञा-पत्र लिखेगी। न भंग होते ही तीजकंवर घबराई हुई उठ कर बैठ गई। उसने उपसर्ग शान्ति हेतु 'उवसग्ग हरं स्तोत्र का इक्कीस बार पाठ किया और मन ही मन सोचने लगी कि इस प्रकार का दुःस्वप्न क्यों आया ? ऐसी कौन-सी शक्ति है जो विघ्न उपस्थित करना चाहती है। बच्चों के लिए भोजन बनाना ही था। ज्यों ही उन्होंने सीगड़ी सुलगाना प्रारम्भ किया त्यों ही वह आसुरी शक्ति शरीर में प्रविष्ट हो गई। इससे अंगीठी न जलाकर हाथ में जो रबर की चूड़ियाँ पहिनने को थी, उस पर माचिस की प्रज्वलित तिली रख दी और साथ ही मिट्टी का तेल भी उस पर डाल दिया। आग भड़क उठी और तीजकुंवरि उस शक्ति के दुष्प्रभाववश उसे देखकर खुश हो रही थी। आधा हाथ बुरी तरह से जल गया। जब आसुरी शक्ति शरीर में से निकल गई । तब तीजकुँवर को पता लगा कि मेरा हाथ जल गया है । भयंकर वेदना हो रही थी। आज्ञा-पत्र उस हाथ से लिखने का प्रश्न ही नहीं था। धन की धनी माता तीजकुंवरि ने कर आज्ञा-पत्र लिखवाया और दायें हाथ के अंगूठे से निशान कर दिया। और कहा कि मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं है । यदि मैं आयु पूर्ण भी कर लूं तो तुमने जो मार्ग चुना है, वह अवश्य ही स्वीकार करना मेरी बेटी ! Tiharirit माताजी को हॉस्पीटल में भर्ती किया गया। हाथ जलने के कारण भयंकर वेदना हो रही थी। साथ ही उसमें पीप-मवाद आदि पड़ गई थी। सुन्दरिकुमारी माता की सेवा के लिए हॉस्पीटल जाती। । उस समय उसके मुंह पर मुखवस्त्रिका रहती थी। मुख वस्त्रिका को निहार कर डॉक्टर कम्पाउडर और एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १०५ www.lamen
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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