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________________ H iiiiiiiiiiiiii साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ आता है. उससे भी अधिक आनाद आता है इसे कहानी सुनने में । कहानियाँ बालकों को अत्यधिक प्रिय होती हैं । वे मिठाइयों से भी अधिक मीठी लगती है । जब बालक क्था कहानियाँ सुनता है तो उस समय न उसे भूख सताती है, न प्यास परेशान करती है और न खेलने की भावना ही जागृत होती है। बाल मनोविज्ञान की इस पहेली को समझकर महासतीजी ने रोचक कहानियाँ सुनानी चालू की। महासती श्री मदनकुंवरजी ने धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और आगमिक कहानियाँ सुनाना प्रारम्भ किया। कहानियों के माध्यम से जो उपदेश दिया जाता है, वह उपदेश भार रूप नहीं लगता । उससे व्यक्ति ऊबता नहीं, विन्तु सहज ही ग्रहण कर लेता है। महासतीजी की कहानियों ने बालिका सुन्दरि के अन्त नया रंग लाना प्रारम्भ किया। कथाओं के साथ ही महासतीजी सामायिक सुत्र, प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल आदि जैन तत्त्वज्ञान का अध्ययन भी कराती । जब भी घर से समय मिलता सुन्दरि अपनी माँ और भाई के साथ धर्मस्थानक में पहुँच जाती । वैराग्य भावना उत्तरोत्तर अभिवृद्धि की ओर थी। एक दिन सुन्दर ने सद्गुरुणीजी श्री मदनकुंवरजी महाराज साहब से पूछा-'बताइए क्या मैं भी दीक्षा ग्रहण कर सकती हूँ ? आपकी शिष्या (चेली) बन सकती हूँ।' संस्कारों में नया रंग उत्तर में सद्गुरुणीजी ने कहा-क्यों नहीं। पर दीक्षा ग्रहण करना जितना सरल है, उतना ही कठिन है साधना का महामार्ग। यह मार्ग तलवार की धार पर चलने से भी अधिक कठिन है। तलवार की धार पर तो बाजीगर भी नाच सकते हैं । अपनी करामात दिखा सकते हैं । पर साधना का मार्ग उससे भी अधिक कठिन है । मोम के दांतों से लोहे के चने चबाना है । इसलिए गहराई से सोच लो। कहने से पूर्व मन की तराजू पर तोल लो। एक बार जो शब्द मुंह से निकल जाते हैं वे शब्द पुनः लौट कर नहीं आते । अतः कोई भी कार्य किया जाय वह विचारपूर्वक हो । याद रखना, अच्छे कार्य में सदा विघ्न आते हैं । जो उन विघ्नों से जूझने की क्षमता रखता है, वही साधक आगे बढ़ता है । जरा सा विघ्न आते ही जो घबरा जाता है, वह साधना के पथ पर नहीं बढ़ सकता। सोने को आग में डाल कर तपाया जाता है । हीरे को शाण पर घिस कर चमकाया जाता है । वैसे ही अभिभावकगण वैराग्य की परीक्षा लेते हैं । जिसका जितना अधिक सुदृढ़ वैराग्य होगा, वह व्यक्ति ही आगे बढ़ता है । वैराग्य की सुदृढ़ नींव पर ही साधना का सुदृढ़ महल खड़ा किया जा सकता है। पहले अपने मन में वैराग्य को तोल लो । उसके पश्चात् मुंह से बोलना । देखना, हाथी के दाँत बाहर निकलते नहीं और यदि निकल जाते हैं तो पुनः अन्दर नहीं जाते । एक दिन उदयपुर में तेरापन्थ समुदाय के आचार्य आए थे। उनके सन्निकट तीन बालिकाएँ दीक्षा ग्रहण करने जा रही थीं । बहुत ही शानदार जुलूस निकला । उस जुलूस को देखकर सुन्दरकुंवर मन —ये तीनों लड़कियाँ मेरी ही उम्र की हैं। ये तीनों दीक्षा ग्रहण करने जा रही हैं, तो मैं क्यों नहीं दीक्षा ग्रहण कर सकती हूँ। मुझमें ऐसी क्या कमजोरी है ? जो मैं इस मार्ग को स्वीकार करने में कतरा रही हूँ। आत्मा में अनन्त शक्ति है । पर हम उस शक्ति को प्रकट नहीं कर रहे हैं । एक दिन गुरुणीजी ने रामायण का प्रसंग सुनाया था कि वीर हनुमान को मेघनाद ने नागपाश में बांध दिया था और उसे रावण की सभा में लाया गया था। रावण ने हनुमान के व्यवहार से क्रुद्ध होकर कहा था कि इसका मुंह काला कर दिया जाय और गधे पर बैठाकर इसे लंका से बाहर निकाल दिया जाय । पर ज्योंही यह बात एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १७५ www.jant
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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