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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii लक्ष्मी प्रसन्न होती है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह दिन पूर्ण रूप से विशुद्ध है। राजस्थानी मान्यतानुसार-अण पूख्यो मोरत भलो के तेरस के तीज । धन तेरस को जन्म होने के कारण शिशु का नाम धन्ना लाल रखा गया । बहुत ही उल्लास के क्षणों में बालक का जन्मोत्सव मनाया गया। जीवनसिंहजी एक ओर पुत्र को पाकर प्रसन्न थे तो दूसरी ओर उन्हें संग्रहणी की बीमारी दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी। कमजोरी के कारण शरीर में सूजन भी आ गयी थी। अनेक उपचार करने पर भी बीमारी कन्ट्रोल में नहीं आ रही थी। उन्हें यह भान हो गया था कि अब मैं लम्बे समय तक जीवित नहीं रहूँगा। मेरे पीछे पिता की क्या स्थिति होगी ? पत्नी और बाल-बच्चों की क्या स्थिति होगी ? यह विचार आते ही उनकी आँखें डब-डबा जातीं। वे सो रहे थे। उन्हें स्वप्न में यह भान हुआ कि एक दिव्य शक्ति उन्हें जागृत कर रही है कि जीवन ! तू लम्बे समय का मेहमान नहीं है । तू अपने जीवन की अन्तिम घड़ियों को सन्थारा कर सुधार ले । तुझे वीर की तरह मृत्यु को वरण करना है, न कि कायर की तरह । स्वप्न पूरा होते ही उनकी आँखें खुल गईं। उन्होंने देखा उषा का आलोक चारों ओर फैल रहा है । उन्होंने उसी समय पिताजी को बुलाया और कहा कि आप उदयपुर में जो महासती श्री सोहन कुँवर जी विराज रही हैं, उन्हें सूचित करें कि मुझे दर्शन देने के लिए पधारें। पूज्य पिता श्री कन्हैयालालजी धार्मिक विचारों के धनी थे। उन्होंने उसी समय महासतीजी को सूचना दी । महासतीजी एक साध्वी को लेकर पधारी। उस समय उदयपुर में कोई सन्त नहीं विराज रहे थे। अतः जीवनसिंहजी ने महासतीजी के सामने अपने पापों की आलोचना की और कहा कि आप मुझे यावज्जीवन का सन्थारा करवा दें। मेरा अन्तिम समय अब सन्निकट है। महासतीजी ने शारीरिक लक्षण देखे । वे समझ गईं पर पारिवारिकजनों की अनुमति के बिना उन्होंने सागारी सन्थारा कराना ही उपयुक्त समझा । और उन्होंने सागारी सन्थारा करा दिया। मंगल पाठ सुनाकर महासतीजी विदा हुए । उनके विदा होने के पश्चात् जीवनसिंह जी ने सभी अभिभावक गणों से क्षमा-याचना की। पितृ--वियोग सत्ताईस वर्ष की उम्र थी। किसी को भी यह कल्पना नहीं थी कि इतनी लघुवय में (वि० सं० १९८८ मिगसरवद ३ तदनुसार दि. २८-११-१९३१) उनका स्वर्गवास हो जाएगा। बालक धन्नालाल इक्कीस दिन का था और पुत्री सुन्दरकंवर सात वर्ष की थी। पिता कन्हैयालालजी के लिए यह आघात दुस्सह साबित हुआ। पुत्र के देहान्त के पश्चात् वे सदा के लिए गमगीन हो गए। तीजकुंवर को पति के चिर वियोग का हृदय विदारक झटका लगा । उनका तो संसार ही उजड़ गया। भविष्य के अनेक रंगीन सुनहरे सपने आँखों के सामने तैर रहे थे, पर यकायक दाम्पत्य जीवन पर वज्रपात हुआ। विधि को तीजकुंवर के भाग्य से ईर्ष्या हो गई। वह उसके अखण्डित सुख न निहार सकी। प्रकृति ने उसके साथ क्रूर उपहास किया। शहनाई की गूंज अभी समाप्त ही नहीं हुई, मातम की धुन बज उठी । प्रसन्नता की गुलाब क्यारियाँ अभी गदराई ही नहीं कि पतझर की आंधी आ गई। तीजकुंवर के सुनहरे जीवन में काला कालीन बिछ गया। कमनीय कल्पना की रंगीन दुनियाँ ताश के पत्तों की तरह बिखर गई । वह सदा के लिए पति सुख से वंचित हो गई । वैधव्य की काली घटाएँ जीवनाकाश में मंडरा आईं। सारा परिवार शोक संतप्त हो गया। जब गोगुन्दा हीरालालजी सेठ को दामाद के आकस्मिक निधन की सूचना मिली तो वे सुबक-सुबक कर रोने लगे। उनके धैर्य का बाँध टूट गया। उन्होंने पुत्री के भविष्य के सम्बन्ध में क्या-क्या कल्पनाएँ की थीं पर क्रूर काल ने उन कल्पनाओं पर तुषारपात F I REF -.-:.--: एक बद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १७३ Pinternatide: .... www.ja ..
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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