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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ माता को शुभ स्वप्न ... रात्रि का शान्त वातावरण था। ठुमक-ठुमक कर पवन चल रहा था। सितारे अनन्त आकाश में चमक रहे थे । प्रेमदेवी सुख की नींद में सो रही थी। उसने देखा एक सुन्दर बगीचा है। जिसमें रंगबिरंगे फूल खिल रहे हैं, महक रहे हैं । उन फूलों पर उमड़-घुमड़ कर भंवरे मंडरा रहे हैं। बगीचे में ही एक सुन्दर सरोवर है । उसमें कमल खिल रहे हैं । उसके किनारे गगनचुम्बी वृक्ष लहलहा रहे हैं। मीलों हरा-भरा दर्वादल लहरा रहा है। उस समय अनन्त आकाश में से एक दिव्य सुन्दरी उतरती है और वह देखते ही देखते उसके मुंह में प्रवेश कर जाती है। स्वप्न का संसार बडा मोहक होता है। उसमें काल्पनिक जगत् भी यथार्थ प्रतीत होता है। मधुर स्वप्न में व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि इस विराट विश्व का सम्पूर्ण ऐश्वर्य उस पर निछावर हो रहा है । माता का अन्तरंग अज्ञात पुलकन से भर गया। वह आनन्द की तरंगों पर तैरने लगी। वह यकायक उठकर बैठ गई और मन ही मन विचारने लगी कि आज तो मैंने बड़ा सुन्दर सपना देखा है । माता प्रेमकुंवर अपने मन में उठ रहे सुखद विचारों को व्यक्त करना चाहती थी। उसने सन्निकट पलंग पर सोये हुए अपने पतिदेव को जगाया, और कहा-"आज मैंने बहुत ही सुन्दर स्वप्न देखा है और उसे बताने के लिए ही मैंने आपको जगाया है।" प्रेमदेवी ने एक ही श्वास में स्वप्न का शब्द चित्र प्रस्तुत कर दिया। स्वप्न सुनकर जीवनसिंहजी ने कहा- तुमने बहुत ही सुन्दर स्वप्न देखा है। इस स्वप्न का फलादेश मेरी दृष्टि से यह है कि तुम सुलक्षणी सुधी कन्या को जन्म दोगी। वह भाग्यवती कन्या हमारे कुल के नाम को उजागर करेगी। ___स्वप्न का फलादेश सुनकर प्रेमकुंवर पुलकित हो उठी और आनन्द से विभोर होकर बोलीआपका कथन पूर्ण सत्य है । मुझे भी ऐसा ही अनुभव हुआ। दिन पर दिन, महीने पर महीने बीतने लगे नियत काल अवधि पूर्ण होने पर प्रेमदेवी की कुक्षि से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। बरडिया परिवार में खुशियां व्याप्त हो गईं । सभी परिवार के सदस्य आनन्द से झूम उठे। वह दिन था विक्रम संवत १९८१ मिगसर कृष्णा सप्तमी, मंगलवार तदनुसार दिनांक १८-११-१९२४ । ज्योतिषी बुलाया गया। जन्म कुण्डली रची गई। उत्तम ग्रहों को देखकर ज्योतिषी चकराया। उसने कहा-मैं पूर्ण निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि यह भाग्यशालिनी कन्या परम योगिनी बनेगी या फिर असाधारण पद प्राप्त करेगी। माता प्रेमदेवी ने सुन्दर स्वप्न देखा था। इसलिए कन्या का नाम सुन्दरि रखा गया । उजला, गौर वर्ण, सौम्य-सुघड़-गोल चेहरा, सुगठित देह, शालीन चापल्य, मुख पर व्याप्त प्रसन्नता की निर्मल कान्ति । जिसे निहार कर सभी प्रमुदित थे। दादाजी की वह प्राणाधार थी । दादीजी की वह लाड़ली थी। पिताजी की दुलारी थी। माता की वह प्यारी थी। सभी कुटुम्बी जन उससे प्यार करते थे। सभी उसे प्यार से अपने हाथों में लेते और खुशियों से चहक उठते । हमारी प्यारी गुड़िया जल्दी-जल्दी बडी होगी । अबोलती मूक बालिका सभी को मुखरित कर रही थी। माता-पिता अपनी प्यारी बिटिया की ततली बातें सुनते तो उसे गोद में भरने के लिये ललक उठते । बालिका को प्रेमदेवी का सात्विक रूप और अपने पिता जीवनसिंह की कर्तव्यपरायणता विरासत में मिली थी। रूप के साथ उसके स्वभाव में १७० | द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन Intonal www.jainelibrary
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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