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________________ (साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ मम्म्म्म्म्म पूज्य महासतीजी, साधना और सिद्धि के बीच की कड़ी है । सतेज-निर्मलता की पर्याय है। ___ साधना से निखरा अन्तरंग स्वरूप कठोर संयम-साधना से अपने तन-मन को कसा है और वाणी को संवारा है। फलतः जीवन वीणा के कण-कण से आत्म संगीत की सुरीली स्वर लहरियाँ झनझना रही हैं। कोई भी दुःखी संतप्त हृदय आपके सान्निध्य में आता है तो अनिर्वचनीय आनन्द की अनुभूति से पुलक उठता है। थका-हारा व्यक्ति आता है तो ताजगी से ललकने लगता है। निराश-हताश और दिशाहारा व्यक्ति आता है तो आस्था का आलोक प्राप्त कर अपने आपको धन्य-धन्य अनुभव करता है। ऐसा-नहीं कि वे कोई जादू-टोना करती हैं। बभूत या प्रसाद देती हैं। किन्तु इनकी साधना के तेज से सभी सहज अभिभूत हो जाते हैं। उनका मधुर व्यवहार, करुण-कोमल भाव से मानव-मानस प्रभावित होता है। वे एक परम्परा और एक सुविदित समुदाय की साध्वी होकर भी सम्प्रदायवाद के बन्धन से सर्वथा मुक्त हैं। जब हम उनके जीवन की अतल गहराई में उतरकर देखते हैं तो स्पष्ट ही अनुभव करने लगते हैं कि आपका सम्पूर्ण जीवन करुणा, निष्काम-साधना, समाजसेवा और सामाजिक वात्सल्य की अपूर्व निर्मल यशोगाथा है। आपका व्यक्तित्व सन्तुलित, संवेदनशील, परोपकाररत और अनुशासन की मर्यादा से बन्धा हुआ है। उसमें करुणा और कठिनता का मणिकांचन संयोग हुआ है । वे स्वयं अपने लिए वज्र और दूसरों के लिए पुष्प हैं। वे अपने लिए हलाहल और दूसरों के लिए अमृत हैं जिन्होंने, जीवन भर संकटों के विष को पीकर ज्ञान का अमृत बाँटा है। जिनके अन्तर्मानस में प्रतिपल, प्रतिक्षण करुणा का अनन्त सागर ठाठे मारता है। इसीलिए उनका व्यक्तित्व मधुर है, कृतित्व मधुर है । माधुर्य उनके जीवन का प्रमुख आधार है। ___ साधना का अमिट तेज और दर्शन का अगाध पाण्डित्य लिए हुए भी जो सहज सरल है, मितभाषी हैं। जिनके प्रत्येक शब्द से मृदुता और निर्मलता टपकती है। जो सदा गुलाब के फूल की तरह मुस्कराती रहती हैं । और सर्वत्र अपनी मधुर महक बाँटती रहती हैं । करुणा की उस गंगा का नाम हैमहासती पुष्पवतीजी ! कभी-कभार विश्व को ऐसी दुर्लभ विमल विभूतियाँ मिल जाती हैं। जिन्हें पाकर वह अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करने लगता है। अपने उदात्त बहु-आयामी व्यक्तित्व के कारण महासती पुष्पवतीजी ऐसी ही पतित-पावनी सन्त श्रेणी में सहज ही आ विराजती हैं। जन्म भूमि उनका जन्म राजस्थान की पवित्र भूमि उदयपुर में हुआ। राजस्थान की वसुन्धरा वीरभमि के रूप में अतीत काल से ही विश्रुत रही है। धर्म और कर्त्तव्य की यह साक्षात् तपोभूमि है। इसका ...LADED एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १६५ . .. Intetnamental www.jainel
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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