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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ | आपका जन्म जालोर में हुआ, पाणिग्रहण भी जालोर में हुआ। गढ़सिवाना में दीक्षा ग्रहण की और वर्तमान में कारणवशात् जालोर में विराजित हैं। __इस प्रकार महासती आनन्दकुंवरजी की परम्परा में वर्तमान में केवल एक साध्वीजी विद्यमान हैं। महासती फत्तूजी की शिष्या-परिवारों में महासती पन्नाजी हुईं। उनकी शिष्या जसाजी हुई। उनकी शिष्या सोनाजी हुईं । उनको भी शिष्याएं हुईं, किन्तु उनके नाम स्मरण में नहीं हैं। महासती जसाजी की नैनूजी एक प्रतिभासम्पन्न शिष्या थीं। उनकी अनेक शिष्याएँ हुईं । महासती वीराजी, हीराजी, कंकूजी, आदि अनेक तेजस्वी साध्वियाँ हुईं। महासती कंकूजी की महासती हरकूजी, रामूजी आदि शिष्याएँ हुईं । महासती हरकूजी की महासती उमरावकुंवरजी, बक्सूजी (प्रेमकुंवरजी) विमलवती जी आदि अनेक शिष्याएँ हुईं। महासती उमरावकुंवरजी की शकुनकुंवरजी उनकी शिष्या सत्यप्रभा और उनकी शिष्या चन्द्रप्रभाजी आदि हैं । और महासती विमलवती जी की दो शिष्याएँ महासती मदनकुंवरजी और महासती ज्ञानप्रभाजी हैं।। महासती फत्तूजी के शिष्या-परिवार में महासती चम्पाजी भी एक तेजस्वी साध्वी थीं। उनकी ऊदाजी, बायाजी आदि अनेक शिष्याएँ हुई । वर्तमान में उनकी शिष्या-परम्परा में कोई नहीं है। महासतो फत्तूजी की शिष्या-परम्परा में महासती दीपाजी, वल्लभकुंवरजी आदि अनेक विदुषी व सेवा-भाविनी साध्वियाँ हुईं। उनकी परम्परा में सरलमूर्ति महासती सीताजी और श्री महासती गवराजी (उमरावकुंवरजी) आदि विद्यमान हैं। इस प्रकार आचार्यश्री अमरसिंहजी महाराज के समय से महासती भागाजी की जो साध्वी परम्परा चली उस परम्परा में आज तक ग्यारह सौ से भी अधिक साध्वियाँ हुई हैं । किन्तु इतिहास लेखन के प्रति उपेक्षा होने से उनके सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी प्राप्त है। इन सैकड़ों साध्वियों में बहुत-सी साध्वियाँ उत्कृष्ट तपस्विनियाँ रहीं। अनेकों साध्वियों का जीवनव्रत सेवा रहा। अनेक साध्वियाँ बडी ही प्रभावशालिनी थीं। मैं चाहता था कि इन सभी के सम्बन्ध में व्यवस्थित एवं प्रामाणिक सामग्री प्रस्तत ग्रन्थ में दं । पर राजस्थान के भण्डार जहाँ इसके सम्बन्ध में प्रशस्तियों के आधार से या उनके सम्बन्ध में रचित कविताओं के आधार से सामग्री प्राप्त हो सकती थी, पर स्वर्णभूमि के. जी. एफ. जैसे सुदूर दक्षिण प्रान्त में बैठकर सामग्री के अभाव में विशेष लिखना सम्भव नहीं था। तथापि प्रस्तुत प्रयास इतिहासप्रेमियों के लिए पथ-प्रदर्शक बनेगा इसी आशा के साथ मैं अपना लेख पूर्ण कर रहा हूँ। यदि भविष्य में विशेष प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध हुई तो इस पर विस्तार से लिखने का भाव है। १६२ | द्वितीय खण्ड , व्यक्तित्व दर्शन . .... . Caterersonal .... +vale www.jainelib .. .. ....
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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