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________________ साध्वारत्न पुष्पवती आभनन्दन ग्रन्थ महासती नवलाजी की चतुर्थ शिष्या जसाजी हुई। उनके जन्म आदि वृत्त के सम्बन्ध में सामग्री प्राप्त नहीं हो सकी है । उनकी शिष्या-परम्पराओं में महासती श्री लाभकुंवरजी थीं। इनका जन्म उदयपुर राज्य में कंबोल ग्राम में हुआ । इन्होंने लघुवय में दीक्षा ग्रहण की। ये बहुत ही निर्भीक वीरांगना थीं। एक बार अपनी शिष्याओं के साथ खामनोर (मेवाड़) ग्राम से सेमल गाँव जा रही थीं। उस समय साथ में अन्य कोई भी गृहस्थ श्रावक नहीं थे, केवल साध्वियाँ ही थीं। उस समय सशस्त्र चार डाकू आपको लुटने के लिए आ पहुंचे। अन्य साध्वियां डाकुओं के डरावने रूप को देखकर भयभीत हो गयीं। डाकू सामने आये । महासती जी ने आगे बढ़कर उन्हें कहा-तुम वीर हो, क्या अपनी बहू-बेटी साध्वियों पर हाथ उठाना तुम्हारी वीरता के अनुकूल है ? तुम्हें शर्म आनी चाहिए। इस वीर भूमि में तुम साध्वियों के वस्त्र आदि लेने पर उतारू हो रहे हो? क्या तुम्हारा क्षात्र-तेज तुम्हें यही सिखाता है ? इस प्रकार महासती जी के निर्भीकतापूर्वक वचनों को सुनकर डाकुओं के दिल परिवर्तित हो गये। वे महासतीजी के चरणों में गिर पडे और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि हम भविष्य में किसी बहन या माँ पर हाथ नहीं उठायेंगे और न बालकों पर ही। डाका डालना तो हम नहीं छोड़ सकते, पर इस नियम का हम दृढ़ता से पालन करेंगे। गुरुणी के चमत्कार की परीक्षा ली श्रावकों ने एक बार महासती लाभकुवरजी चार शिष्याओं के साथ देवरिया ग्राम में पधारी । वहाँ पर एक बहुत ही सुन्दर मकान था। एक श्रावक ने कहा-महासतीजी, यह मकान आप सतियों के ठहरने के लिए बहुत ही साताकारी रहेगा। अन्य श्रावकगण मौन रहे। महासतीजी वहाँ पर ठहर गयीं। महासतीजी ने देखा उस मकान में पलंग बिछा हुआ था। उस पर गादी-तकिये बिछाये हुए थे तथा इत्र पुष्पों की मधुर सौरभ से मकान सुवासित था। रात्रि में कोई भी बहन महासतीजी के दर्शन के लिए वहां उपस्थित नहीं हुई। महासतीजी को पता लग गया कि इस मकान में अवश्य ही भूत और प्रेत का कोई उपद्रव है । महासती लाभकुंवरजी ने सभी शिष्याओं को आदेश दिया कि सभी आकर मेरे पास बैठे। आज रात्रि भर हम अखण्ड नवकार मन्त्र का जाप करेंगी। जाप चलने लगा। एक साध्वीजी को जरा नींद आने लगीं। ज्यों ही वे सोई त्यों ही प्रेतात्मा उस महासती की छाती पर सवार हो गयी जिससे वह चिल्लाने लगी। महासती लाभकुंवरजी ने आगे बढ़कर उस प्रेत को ललकारा-तुझे महासतियों को परेशान करते हुए लज्जा नहीं आती। हमने तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा है । महासती की गम्भीर गर्जना को सुनकर प्रेतात्मा एक ओर हो गया। महासती लाभकुँवरजी ने साध्वियों से कहाजब तक तुम जागती रहोगी तब तक प्रेतात्मा का किंचित् भी जोर न चलेगा। जागते समय जप चलता रहा। किन्तु लम्बा विहार कर आने के कारण महासतियाँ थकी हुई थीं। अतः उन्हें नींद सताने लगी। ज्योंही दसरी महासती नींद लेने लगी त्यों ही प्रेतात्मा उन्हें घसीट कर एक ओर ले चला। गहरा अँधेरा था, महासती लाभकुंवरजी ने ज्यों ही अन्धेरे में देखा कि प्रेतात्मा उनकी साध्वी को घसीट कर ले जा रहा है, नवकार मंत्र का जाप करती हुईं वे पहुंची और प्रेतात्मा के चंगुल से साध्वी को छुड़ाकर पुनः अपने स्थान पर लायीं और रात भर जाप करती हुईं पहरा देती रहीं। प्रातः होने पर उनके तपःतेज से प्रभावित होकर महासतीजी से क्षमा मांगकर प्रेतात्मा वहाँ से चला गया। महासती ने श्रावकों को उपालंभ देते हुए कहा--इस प्रकार भयप्रद स्थान में साध्वियों को नहीं ठहराना चाहिए। श्रावकों ने कहा-हमने सोचा कि हमारी गुरुणीजी बड़ी ही चमत्कारी हैं, इसलिए इस मकान का सदा के लिए संकट जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएं एवं सद्गुरुणो परम्परा :उपाचार्य श्रीदेवेन्द्र मुनि | १४६ AM www.jainel
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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