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________________ साध्वारत्नपुष्पवती आभनन्दन ग्रन्थ ၁၉၈၀% ?? ?????? ? ? ? ] ] ] ၀၇၀၈၈၇၀၇၇ ၇၇၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀ महिमा छाई चारों ओर -वैरागी संजय जैन (वर्तमान- श्री सुरेन्द्र मुनि) ******** * * * * •••••••••••••••••••• • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • ••••••••• iiiiiiiffffffffffffffffffitiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiififffilifffiilimfiliffiffitiffffffiliffTREA पुष्प गुरुणी की महिमा छाई है चारों ओर, भवरा नाचे फूलों पर, ज्यों जनता आवे दौड़ ॥टेर।। बाल अवस्था में संयम धारा, वाणी की तुम हो निर्मल धारा । आप तिरे और तारे जन-जन का किया उद्धार ॥१॥ मार्ग संयम का आपने बताया, अवगुण जीवन से दूर भगाया। कदम आपके बढ़ते हैं, मुक्ति नगर की ओर ॥२॥ नर-नारी गाते हैं गौरव तुम्हारा, तेज चमकता है जैसे सितारा । सावन में बादल की गर्जन, सुन नाचे मोर ॥३।। दौड़ के तुम्हारे दर्शन को आऊँ, दर्शन करके जीवन धन्य बनाऊँ। भव-भव के इस चक्कर से, आप बचावो मोय ॥४॥ गुरुणी जी मेरी वन्दना स्वीकारो, नया भंवर में पड़ी पार उतारो। "संजय" पुकारे मेरे काजलिया की कोर ॥५॥ म five MERIHIMI RRITHIPARम मामा महिमा छाई चागे ओर | १३५ www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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