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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ w FROOR w Fesa wRANPHE -- TITO F - R जिन शासन को वसुंधरा पर, सतत दिपाती जाती है। परम विदुषी पूज्या सती जी, पुष्पवती कहलाती है ।।१।। प्रभावती जी मात आपकी, पिता जीवनसिंह हैं प्यारे । ओसवाल में कुल बरड़िया है, जन-जन के मन मोहन गारे ।।२।। झीलों की नगरी शहर उदयपुर, संयम व्रत अपनाया है। सत्य, अहिंसा, क्षमा शील से, जीवन को चमकाया है ॥३॥ महाव्रतधारी, उग्रविहारी, निर्मल यश के धारी हैं । निर्मल है चारित्र आपका, गुण गण के भण्डारी है ॥४॥ गीतलता है चांद सरीखी, तेज सूर्य सा चमक रहा है । सागर सम गम्भीर आप हैं, वचन सुधारस वर्ष रहा है ॥५॥ श्रमण संघ है सागर जैसा, अगणित जिसमें कमल खिले । पंच समिति त्रय गुप्ति धारक, अनुपम-अनुपम है विरले ।।६।। a m 0900109999999DDCDD94999900000000000000000099999999999999000000000000E अभिनन्दन श्रद्धार्चना द्वादशी asledishsosasterdesjeshse fedesiesteofessodedesestestososesisdedesesesesesastesededesesesasodedesastestendesesentendedestastroposestetroessfecadesdasieshsastaseetests. -जयसिंह छाजेड 'रत्नेश' ......................................... जगह-जगह पर विचर-विचर कर, जैन की ध्वजा फहराई है। आगम वाणी सत्य सुनाकर, दुनियाँ सुप्त जगाई है ।।७।। सुनकर प्रसन्न चित्त हो जाता, जब भी नाम लिया जाता। ज्यों चातक को स्वाति नीर के, मिलने पर आनन्द आता ॥८॥ सुन करके हो जाते गद्गद, जिसको जग के प्राणी है। अधिक-अधिक है मिश्री से भी, मिठी अमृत वाणी है ॥६॥ श्रमण संघ की शोभा सारी, ऐसी ही महासतियों से । सचमुच तप-जप सजता है, अति गहरे ज्ञानी गुणियों से ।।१०।। गुण रत्नों की दिव्य ज्योति से, जीवन आपका ज्योतिर्मान । क्या बतलाएँ सचमुच ही तुम, श्रमणीरत्न और भाग्यवान् ।।११।। धीर-वीर-मृदु-शान्त-गुणाकर, महिमा आपकी अपरम्पार ।। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती प्रसंगे, 'रत्नेश' अभिनन्दन है शत-शत बार ।।१२।। 1 १३२ | प्रथम खण्ड : शुभाकमना : अभिनन्दन www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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