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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ................. HARA .... . ...... चरित्र वस्तुतः समाज और राष्ट्र के लिए प्रकाश-स्तम्भ हैं। जिनसे आबाल-वृद्ध सात्विक प्रेरणा प्राप्तकर सद्धर्म की आराधना में रुचिवान बनकर प्रतिपल/प्रतिक्षण आगे बढ़ते रहते हैं । सत्य और शील की साधना से उनका जीवन अमर हो जाता है । उनके दिव्य जीवन की प्रेरणाओं से सम्पूर्ण मानवता कृतार्थ हो जाती है। महापुरुषों अथवा महासतियों के जीवन-चरित्र की यह विशेषता रही है कि उनके उपदेशों को श्रवण कर सम्पूर्ण मानव जाति का मस्तक गौरव से ऊँचा हो उठता है । विनय व श्रद्धा से झुक जाता है। उनके शौर्य एवं साहस की प्रेरणा रूपी धमनियों में जोश, उत्साह, कर्तव्यनिष्ठा एवं सदाचार का रक्त प्रवाहित होने लगता है। उन्हीं ज्योतिर्धर महापुरुषों के पाद-पद्मों में असंख्य नर-नारियों के सिर श्रद्धा से झुक जाते हैं जो अपने संयमी जीवन को सद्गुणों से मण्डित कर सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यग्चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना/साधना में अपने जीवन को पूर्ण समर्पित कर देते हैं । इसी की पावन शृंखला में परम विदुषी महासती श्री पुष्पवतीजी म० का नाम स्मृति पटल पर उभर जाता है । महासतीजी स्थानकवासी जैन समाज की वाटिका की एक सुरभित पुष्प है, जो स्वयं महक कर आसपास के वातावरण को भी सुवासित कर रही है । सेवा, त्याग, तप और सहिष्णुता में आपके जीवन की सौरभ समायी हुई है । जैसेएक दीपक अपनी देह के कण-कण को जला कर आलोक प्रदान करता है, उसी प्रकार महासतीजी ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण समाज को समर्पित कर दिया, अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी ज्योति जलाई । एक अंग्रेज कवि ने कहा है "Humility and Love are the essence of true religion."-महासतीजी का जीवन भी नम्रता, विनय और प्रेम से परिपूर्ण है । आपके व्यक्तित्व और कृतित्व में हिमाचल की महानता, आकाश की अनन्तता और सागर की गम्भीरता परिलक्षित होती है। मुख-मण्डल पर तप-संयम की दीप्तिमान आभा बिखरी हुई है तथा वाणी में अनोखा ओज है। आप उच्चकोटि की महान् साध्वी है । आपकी वाणी में हीरा-सी चमक, मोती-सी दमक और स्फटिक मणी जैसी पारदर्शिता है। आपकी व्याख्यान शैली ऐसी है कि एक ओर वाणी में अद्वितीय भक्ति-सुधा रस लहराता है तो दूसरी ओर जीवन को उद्वेलित करने वाली जोशीली फटकार व ललकार है । आपका जन्म मेवाड़ प्रान्त की पावन धरा पर हुआ जो देश की स्वतंत्रता और गौरव की रक्षा के लिए सैकड़ों वर्षों तक निरन्तर बलिदान करता रहा है। जहाँ के वीर यद्धोाओं ने अपने रक्त से मातृभूमि को सींचा और उसकी रक्षा के लिए वीर रमणियों ने और बालकों ने भी अपने प्राणों की आहूतियाँ दे दी। जन्मभूमि के लिए ही नहीं किन्तु धर्म के लिए भी जिन्होंने हँसतेहँसते बलिदान दिया है। उसी वीर बसन्धरा पर जन्म लेकर आपने जननी और जन्म भूमि के नाम को रोशन किया जैसे-सूर्य का प्रकाश, चन्द्रमा की शीतलता, समुद्र का गाम्भीर्य, कस्तुरी की सुगन्ध प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती, उसी प्रकार आपके व्यक्तित्व को निखारने की आवश्यकता नहीं, वह तो स्वयं निखरित है। साध्वीरत्न, विद्वद्वर्या महासती श्री पुष्पवतीजी म. सा. दिव्य जीवन की श्रेष्ठतम गुणों का अगाध महासागर है। उनके विशिष्ट सद्गुणों के समुद्र को चन्द शब्दों के बिन्दुओं से बांधना सर्वथा असम्भव है । आपके जीवन में सरलता और विनम्रता की निर्मल धारा सतत प्रवाहित होती रहती है। आप सदा हँसमुख और प्रसन्न बनी रहती है । आपकी मुख मुद्रा सूर्यमण्डल के समान तेजस्वी, चन्द्रमण्डल विलक्षण व्यक्तित्व की धनी : महासती श्री पुष्परतीजी म. | ११५ IIT. Maton Mentation www.jainelibra IA
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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