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________________ सावारनपुodता आमनन्दन न्य मुनिजी म० उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म० महासती पुष्पवतीजी ने नाथद्वारा में अनेक के पास दीक्षित है जिनका नाम दिनेश मुनि है। वर्षावास किए हैं, उन वर्षावासों में मुझे सेवा करने सद्गुरुणी श्री पुष्पवतीजी की पावन प्रेरणा मुझे का अवसर मिला है। मैंने महासतीजी में सबसे मिलती रही पर मैं स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के बड़ी विशेषता यह देखी चाहे गरीब हो, चाहे कारण श्रमण धर्म ग्रहण न कर सका, पर मेरी धनवान हो, चाहे स्त्री हो या पुरुष, चाहे वालक हादिक भावना यही है कि वह मेरे लिए स्वर्ण का हो चाहे वृद्ध हो वे सभी से समान व्यवहार रखती सूर्योदय होगा जिस दिन मैं श्रमण धर्म को ग्रहण हैं। इसलिए सभी की श्रद्धा आप पर है । आप जहाँ करूंगा। भी जाती हैं वहाँ पर आपकी चरित्र रूपी सौरभ सद्गुरुणी पुष्पवती जी के गुणों का उत्कीर्तन को लेने के लिए भक्त रूपी भौंरे मंडराते रहते हैं। मैं किन शब्दों में करू', उनके सौम्य मुख मुद्रा को आपके जीवन में सर्वत्र मधुरता है । आपके मधुनिहारकर दर्शक श्रद्धा से नत हो जाता है, वे रिमा पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व को हमारा कोटिबहुत ही मितभाषी हैं, वे जीवन के अनमोल क्षणों कोटि वन्दन और अभिनन्दन ! का उपयोग स्वाध्याय-ध्यान-चिन्तन-मनन और धर्म-चर्चा में करती हैं। प्रमाद उनके जीवन में कहीं भी दिखलाई नहीं देता है। आपका शास्त्रीय ज्ञान गहन है। और जब आप शास्त्रीय समाधान देती हैं तो जिज्ञासू मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। निर्मल मन की धनी : सद गरुणीजी ___ आपका प्रभावशाली गरिमामय व्यक्तित्व -डालचन्दजी परमार, [उदयपुर] सभी के लिए पथ प्रदर्शक । मैं दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के सुनहरे क्षणों में श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हुए। महासती पुष्पवतीजी एक निर्मल मन की धनी अपने आपको धन्य अनुभव कर रहा हूँ। साध्वी हैं; वे भूले-भटकों को सत्पथ पर लाने का अहर्निश प्रयास करती हैं। भौतिकवाद के कुहरे में भूले-भटके इन्सानों को आप मानवता का पाठ 100066ణంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంం पढाती हैं। आप मानवता के उद्घोषक हैं । कवि के महासतीजी की सफलता शब्दों में कितनों के अवलम्बन बने हो, -सोहनलाल जैन, (सा०रत्न, नाथद्वारा) कितनों को भर अंक लगाया ? स्वयं गरल पीकर कितना, CACICICISEDICCHEESEDGIEDEEOSSEDDDEDEBEDEIOMDESISEDIDESHED ओरों को पीयुष पिलाया? ___ मेरा मन बहुत ही प्रफुल्लित है क्योंकि दीक्षा बनकर निर्देशक कितनों को, स्वर्ण जयन्ती के सुनहरे अवसर पर साध्वीरत्न तुमने भूली राह बताई ? पुष्पवतीजी को अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा कितनों के तमसात मन में, रहा है। महासती पुष्पवतीजी एक तपी-तपाई तुमने जीवन ज्योति जगाई ? आत्मा हैं, जिन्होंने ५० वर्ष तक उग्र साधना की है आप हजारों की अवलम्बन बनी और हजारों उस साधना में आत्मा रूपी स्वर्ण को कुन्दन का पथ प्रदर्शन किया इसीलिए श्रद्धालुगण आप बनाया है। श्री के प्रति नत हैं और उन्होंने श्रद्धा से अभिभूत निर्मल मन की धनी : सद्गुरुणीजी | १०६ Main
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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