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________________ साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ रहती थीं। और वे बहिनों को सदा शास्त्रों का स्वाध्याय सुनाया करती थी तथा ज्ञान-चर्चा किया करती थी। उनका थोकड़े का ज्ञान बहुत ही गहरा था। घण्टों तक वे थोकड़े गिना करती थी। कभी भी निरर्थक वार्तालाप नहीं करती। उनका जीवन बड़ा अद्भुत, प्रेरणादायी था। मैं घण्टों तक उनकी सेवा में बैठी रहती और वे सदा धामिक शिक्षाएँ प्रदान करती। उसके बाद में मंने भो उनके दर्शन अनेक बार किये । मैं खाली गई और भरी लौटी। अनूठा था उनका व्यक्तित्व और कृतित्व ।। मौसी महाराज पुष्पवतीजी बहुमुखी प्रतिभा की धनो साध्वी हैं । म उनके दर्शन किये अनेक बार किये । जब भी मैंने दर्शन किये तब उनके त्याग-वैराग्य पूर्ण व्यक्तित्व को निहारकर मैं प्रभावित हई। उनके चरणों में बैठकर मुझे अपार आल्हाद की अनुभूति होती रही है। ___ हमारा महान् सौभाग्य है कि सन् १९८६ का वर्षावास पाली में मामाजी महाराज श्री देवेन्द्र मुनिजी म. श्रद्धय सद्गुरुवर्य उपाध्याय विश्व सन्त १००८ श्री पुष्कर मुनिजी महाराज साहब के साथ हुआ । इस वर्षावास में हमें धार्मिक अध्ययन करने का अवसर मिला और हमें यह जानकर आल्हाद हुआ कि मौसी महाराज को दीक्षा के पचास वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं और वे एकावनवें वर्ष में प्रवेश करेंगी। उस मंगल बेला में एक अभिनन्दन ग्रन्थ उन्हें समपित किया जा रहा है। मौसी महाराज का जीवन सागर के समान है जिसमें गुणों के रत्नभरे पड़े है । आपका जीवन अन्तरिक्ष के समान विस्तृत है । जिसका कोई ओर छोर नहीं हैं। कई बार अनन्त आकाश में उमड़-घुमड़ कर घटाएँ आती हैं और वे घटाएँ बिना बरसे ही लौट जाती हैं । वैसी स्थिति मेरी भी हो रही है। मेरे हृदयाकाश में भावों की घटाएँ आ रही हैं । पर वे घटाएँ शब्द रूप बनकर कागज पर उतर नहीं पा रहीं हैं। मन में बहुत कुछ विचार आते हैं, पर लिखा नहीं जा रहा है । मेरी, मेरे पूज्य पिताश्री पारसमलजी कांकरिया, मेरी मातेश्वरी उषा देवी, मेरे भ्राता सुनील कुमार,विकास कुमार और मेरी लघु बहिन अमिता की ओर से इस सनहरी घड़ियों में जिनेश्वर देव से यह प्रार्थना करती हैं कि आपके तन में प्राण शक्ति मन में तेजस्विता, विचारों में अपूर्व उदारता, वाणी में ओजस्विता और बुद्धि में सूझ-बूझ प्रतिपल-प्रतिक्षण प्रवाहित होती रहे । आप पूर्ण स्वस्थ रहकर हमारा सतत मार्ग दर्शन करें। आपका यशस्वी जीवन समस्त संघ के लिये वरदान रूप रहे । कवि की भाषा में यही कहूँगी आप हमारी आत्मा, आप हमारे प्राण हैं। जैन धर्म के देवता, शत-शत तुम्हें प्रणाम है। पुष्प सूक्ति कलियां - । अहिंसा में संयम तथा करुणा इन दोनों धाराओं का होना आवश्यक है । जैसे हवाई जहाज में दो यन्त्र होते हैं । एक यंत्र हवाई जहाज की रफ्तार को घटाता-बढ़ाता है और दूसरा यंत्र दिशा का बोध कराता है । इसी प्रकार अहिंसा के साथ भी ये दोनों प्रकार के द्रव्य-भावरूप या बहिरंगअन्तरंगरूप यंत्र आवश्यक हैं। शत-शत तुम्हें प्रणाम | ER www.sain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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