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________________ uul.... साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ वर्षावास सम्पन्न हुआ। विदाई बेला सन्निकट मैं यह साधिकार कह सकता हूँ कि जैन धर्म आई । गुरुणी मैया को मैंने पूछा-मेरे लिये क्या एक महान् धर्म है। इसके सिद्धांत बहुत ही उदार आदेश है ? उन्होंने कहा- "दीये से दीया जलाते और मानवीय हैं। इस धर्म के जो सन्त और जाओ" । जिन व्यसनों से तुम्हारा जीवन संत्रस्त सतीगण है वे बहुत ही त्यागी और तपस्वी और था वैसे ही हजारों लोगों का जीवन भी संत्रस्त निर्लोभी हैं। मैं अपने संगी साथियों को यही है। तुम उनके जीवन को नई दिशा दो। गुरुणी प्रेरणा देता हूँ कि वे इस मानवतावादी धर्म को जी का आदेश हुआ। मैं जहाँ भी जाता वहां पर अपनाकर अपने जीवन को पावन बनावें। यह अभियान प्रारम्भ कर दिया और मैंने सैकड़ों गुरुणी मैया के लघु भ्राता श्री देवेन्द्र मुनिजी व्यक्तियों को शराब छुड़वा दी। अन्य व्यसन ने मुझे यह बताया कि गुरुणी मैया के साधना के छुड़वा दिये । मेरा सम्पूर्ण परिवार आज जैन हैं। पचास वर्ष हो रहे हैं और उसके उपलक्ष्य में एक मेरे बाल-बच्चों में भी ऐसे सदृढ संस्कार गरुणी ग्रन्थ निकालने की योजना है। मुझे बहुत प्रसन्नता मैया ने डाले कि मेरा परिवार आज सुखी है, हुई । मैं अपनी अनन्त श्रद्धा के साथ गुरुणी मैया के समृद्ध है और हर तरह से हमारे जीवन में आनन्द चरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ। है। यह सब गुरुणी मैया के पुण्य का ही प्रतिफल है। విరించడం అందడండదండంబడిందించిందంబందంజ प्रे र क—सं र म र ण --डा. ए. डी. बतरा (पूना विश्वविद्यालय, पूना) - కంభంణంగాణ00creepeee e eeee0000001 समता, सहिष्णुता, नम्रता, सरलता आदि मानवीय गुण जिनके जीवन का शृंगार है। जिनके जीवन में एक नहीं अनेक गुण हैं । ऐसी परम विदुषी महासती पुष्पवतीजी के सम्बन्ध में, मैं क्या लिख ? उनके जीवन के अनेक संस्मरणों जो मुझे देवेन्द्र मुनि ने सुनाये थे, वे आज भी मेरे अन्तर्मानस में उभर रहे हैं । उन संस्मरण में से स्थाली, पुलाकन्याय से मैं कुछ ही संस्मरण यहाँ प्रस्तुत करूगा। उन संस्मरणों से यह सहज ही परिज्ञात होगा कि महासतीजी में कितनी दूरशिता, निष्कामता. गम्भीरता सहिष्णुता, समानता और वैराग्य भावना प्रभृति गुणों का मणिकांचन संयोग हुआ है। .सन् १६४६ में महासतीजी अपनी ज्येष्ठ गुरु बहिन महासती श्री कुसुमवतीजी के साथ जैन न्याय और दर्शन का अध्यायन करने हेतु ब्यावर पधारी। ब्यावर शहर से जैन गुरुकुल तीन किलोमीटर के लगभग दूर था। प्रतिदिन शिक्षा के लिए शहर में आने-जाने से काफी समय अध्ययन से वंचित रहना पड़ता था। गुरुकुल में कुछ अध्यापकों के मकान थे, वहीं से जो कुछ थोड़ा बहत आहार प्राप्त हो जाता उसी से वे अपना निर्वाह कर अध्ययन में लगी रहती थी। जब अवकाश होता तभी आहार के लिए ब्यावर शहर में पधारती। उसी दिन उनका पूर्ण आहार होता था। शेष दिनों उनोदरी तप के साथ अध्ययन चलता था। यह थी उनमें ज्ञान-निष्ठा। .आपकी सद्गुरुणीजी श्री सोहनकुंवरजी म. वृद्धा महासतियों के कारण उदयपुर में विराजिता थी । व्याकरण का अध्ययन चल रहा था । क्वींस कालेज, वाराणसी की मध्यमा परीक्षा की तैयारी चल रही थी, उसमें सम्पूर्ण सिद्धान्त कौमुदी थी। सम्पूर्ण सिद्धान्त कौमुदी का अध्ययन कर ७४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jar ...... ...
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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