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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ चातर्मास हआ। में उस चातुर्मास में अनेक बार विराजना पडा। और सन १९८४ का वर्षावास सम्पर्क में आया। मेरे मन पर उनके निश्छल किशनगढ़ में हुआ और सन् १९८५ का वर्षावास व्यक्तित्व का अद्भुत प्रभाव पड़ा। हरमाडा को मिला। और पूनः आप हरमाड़ा से सन् १९७५ में पुनः महासतीजी का द्वितीय वर्षावास के पश्चात विहारकर मदनगंज पधारी। वर्षावास मदनगंज में हआ । इस वर्षावास में पूर्व इस प्रकार मदनगंज के सभाग्य के कारण हमें वर्षावास से अधिक सन्निकट आने का अवसर सेवा का सुअवसर मिला । महासतीजी की अपार मिला । मुझे यह लिखते हुए अपार आह्लाद होता अनुकम्पा हमारे पर रही। मैं ज्यों-ज्यों महासतीजी है कि महासतीजी की मेरे पर और मेरे परिवार के सम्पर्क में आया त्यों-त्यों मेरी श्रद्धा दिन दुनी पर अपार कृपा रही है। उसी कृपा का सुफल है और रात चौगुनी बढ़ती चली गई । मेरी ही नहीं कि मेरा पूरा परिवार महासतीजी के प्रति पूर्ण मेरे पूरे परिवार के श्रद्धा विकास में हआ है। मैं श्रद्धालु हैं। साधिकार कह सकता हूँ कि महासतीजी के जीवन सन् १९७३ का अजमेर का यशस्वी वर्षावास में अनेक सद्गुण हैं । वे सदा प्रसन्न मुख रहती हैं। सम्पन्नकर श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री कभी भी उनके चेहरे । कभी भी उनके चेहरे पर उदासीनता और खिन्नता पुष्कर मुनिजी महाराज सा. हमारी भावभीनी । दिखलाई नहीं देतो । उनका स्वास्थ्य कई बार प्रार्थना को सम्मान देकर मदनगंज पधारे । उनके । १ प्रतिकूल भी रहा पर उस प्रतिकूलता में भी उनका पावन प्रवचनों को सुनकर हमारे संघ में अभिनव । जीवन-पुष्प सदा मुसकराता ही रहा है । मैंने अपने चेतना का संचार हुआ। हमने उस वर्ष गुरुदेव के ___ जीवन में अनेक साध्वियों के दर्शन किये हैं । पर - वर्षावास हेतु जी-जान से प्रयत्न किया। पर आप में जो विलक्षण विशेषता देखी है । वह दूसरों अहमदाबादसंघ के अत्याग्रह से वह वर्षावास में कम देखने को मिली है । उन्हीं विशेषताओं के - अहमदाबाद को प्राप्त हुआ। हमारा संघ समय 1- कारण आप अन्य साध्वियों से विलक्षण है। समय पर प्रार्थना करता रहा । सन् १९८३ का पूज्य मुझे श्री देवेन्द्र मुनिजी से परिज्ञात हुआ कि गुरुदेव का वर्षावास हमें महासती श्री पुष्पवतीजी महासतीजी सन् १९८७ में दीक्षा के ५० बसन्त में की कृपा से मिला । क्योंकि अनेक संघ गुरुदेव के प्रवेश करेंगी। उस अवसर पर श्रद्धालुओं के द्वारा चातुर्मास के लिये ललक रहे थे। पर हमारी ओर से महासती पुष्पवतीजी ने ऐसी वकालात की कि उन्हें एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने की योजना है। यह सुनकर मेरा हृदय आनन्द से हमें वर्षावास का लाभ मिला। है तरंगित हो उठा। मैं अपने आपको गौरवान्वित इसके पूर्व मदनगंज की दो बालाओं ने अनुभव कर रहा हूँ कि प्रस्तुत ग्रन्थ में अपने श्रद्धा महासती पुष्पवतीजी के पास संयम ले रखा है। अतः हमारी प्रार्थना को सम्मान देकर गुरुदेव के के दो बोल लिख सका हूँ। मेरी तथा मेरे परिवार सान्निध्य में महासतीजी का भी चातुर्मास हुआ और की यह हार्दिक मंगल कामना है । आप पूर्ण स्वस्थ इस चातुर्मास में बेंगलौर निवासी बहिन निर्मलाजी रह कर हमारे पर सदा आशीर्वाद बरसाया करें। आपका मंगलमय आशीर्वाद हमारे लिए सम्बल ने दीक्षा ग्रहण की। इस चातुर्मास में मेरा पूरा * परिवार गुरुदेव और गुरुणीजीके प्रति पूर्ण समर्पित रूप रहेगा। जिससे हम धर्म के क्षेत्र में सदा रहा। यह ऐतिहासिक चातुर्मास मदनगंज संघ के आग बढ़त रह। लिए वरदान रूप में रहा । महासती श्री चतर कुंवरजी की वृद्धावस्था के कारण महासतीजी को मदनगंज लम्बे समय तक ७२ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jaineline
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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