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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ वन्दन अभिनन्दन स्वीकारो -साध्वी मधुबाला 'सुमन' (शास्त्री साहित्यरत्न) htritititiffithilitimBREAMILTHumm जैन धर्म में नारी की, जिस कुल में एक संयमी, गौरव गाथा अमर महान् । वह कुल हो जाता महान् । युग-युगों तक याद रहेगी, जिसमें सभी संयमी बने, आर्य नारी की यह दाश्तान ॥१॥ उस कूल को कहेंगे महामहान् ॥६॥ जहाँ-जहाँ समय आने पर, राजस्थान की धरती भी, हिम्मत लेकर अड़ी रही। चरण रज से हुई पावन । पुरुष वर्ग भी हार चुके थे, धन्य धन्य है महासती को, जीत लेकर खड़ी रही ॥२॥ बाल ब्रह्मचारी मन भावन ॥७॥ ऋषभ से महावीर तक, जीवनसिंहजी सुन्दर को पा, हुई अनेकों सती विद्वान । हो गये थे बड़े निहाल । ज्ञानी-ध्यानी तपी महात्मा, "प्रभा” को पा "पुष्प" विकसा, संयम लेकर किया कल्याण ॥३॥ गरु "पुष्कर" मिले विशाल ।।८।। चन्दन बाला मोक्ष पहुंची, उन गुरु शिष्य की जोड़ी, दे गई वह अमर वरदान । चन्द्र सूर्य सम दीप रहें । धन्य-धन्य है भारत भू को, बहिन है पुष्प सतीजी, नारी रत्न गुणों की खान ।।४।। मुक्तिपूर के समीप रहे ॥॥ उसी परंपरा में प्रभावतीजी, संवत उन्नीसो चौराणु में, अरु पुष्पवतीजी है विशेष । पुष्पवतीजी बनी अनगार । कर पुरुषार्थ धर्म दिपाया, गुरु पुष्कर की शिक्षा का, हम तो लेगें नाम हमेश ॥ ५॥ किया भारत में खूब प्रचार ॥१०॥ वन्दन अभिनन्दन महासती का, स्वीकार करो श्रद्धा की थाल । दीर्घायु बनें आप की, “मधु" भी बन गुणी विशाल ॥ ११ ।। m mHINTIMITTERRRRRRRRRRRRIAमामामाम्म्म्म्म्म्म ......... पुष्प मूक्ति कलियां ......... 0 अहिंसा एक महासरिता के समान है । जब वह साधक के जीवन में इठलाती-बल खाती हुई चलती है तब साधक का जीवन सर सब्ज और रमणीय बन जाता है। . . वन्दन अभिनन्दन स्वीकारो । ६३ www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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