SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्यात्मपुष्पवता आमनन्दन वन्य ၈၈၈၈၈၈၈၉၀၉ ၈၉၆၈၀၈၈ ၇၀၀ ၈၀၀ ၇၇၆၈၀၇၈ ၆၈၈၈၈၉၉၇၀၇၀၀၈ $$1$ $ ၈၀၀ ၀ ၉၆၉၆၉၀၀ ၆၇၂၇ स म मा न सु म न --जितेन्द्र मुनि 'काव्यतीर्थ testodestasedlosestestestostesteste destadestestastestostestosteste deste desteste stastestostesteste destestostestes stastestostestastastesteste stedest sta slagtestesosteste destestostese desto stastestesesest. वीतराग विज्ञान की, शोध करे दिन रात । निजानन्द में लीन को, सिद्धि आती हाथ ।। परम विदुषी महासती, पुष्पवतीजी नाम । सोहनसती की लाडली, शिष्या गुण का धाम ।। प्रभावती की पुत्रिका, गुण-रत्नों की खान । भगिनी मुनि देवेन्द्र की, जाने जैन जहान ।। अभिनन्दन उनका अमल, करता सकल समाज । गुण पूजा का जगत में, जीवित रहे रिवाज ।। मिला श्रमणियों को सुखद, जिन शासन में स्थान । स्त्री हो चाहे पुरुष हो, संयम सदा महान ।। समता पथ की साधिका, रखती उच्च विचार । उच्च विचार प्रचार हित, करती पाद विहार ।। बाधाओं को चीरती, बढ़ती रही हमेश। आगे बढ़ने का हमें, देती नित उपदेश । माता-भ्राता से मिले, खिले धर्म-संस्कार । शासन सेवा में रहे, त्वरता से तैयार ॥ गुरु पुष्कर से प्राप्त कर, आध्यात्मिक सज्ज्ञान । पुष्पवतीजी बांटती, दोनों हाथों दान ।। गुरुणी के प्रति नित रही, पूर्ण समर्पित आप। सरस समर्पण भावना, सिखलाती है साफ ।। शिष्याओं को दे रही, मातृ तुल्य वात्सल्य । वत्सलता कब पनपती, जो हो दिल में शल्य ।। श्रमण संघ में आपका, बढ़े सदा सम्मान । ___ लौ सम जगमगता रहे, जीवन त्याग-प्रधान ।। भाव पूर्ण गुण वर्णना, करें आप स्वीकार । 'मुनि जिनेन्द्र' जीवित रहें, जग में वर्ष हजार ।। ५४ [ प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy