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साध्वारत्न पुष्पवती आभनन्दन ग्रन्थ
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___ --गणेश मुनि शास्त्री पुष्पवतीजी आपका, पुण्य बहुत बलवान है, जो सहजता तुम में समाहित,वह अन्य में मिलतो नहीं, जैन जगत से पा रही, आप बहुत-बहुमान है, कारूप्य की कलियां जो तुम में,वे अन्यत्र खिलती नहीं, साधना की कसौटी पर आप उतरी हैं खरी- महावीर का दिव्य पैगाम लिए, तुम तो चल रही हो वास्तव में आपका नहीं यह त्याग का सम्मान है। साधना की मशाल तुम सी, हर कहीं जलती नहीं। आपकी सुरभि महकी धरा, महका गगन है, धीर व गंभीर बन कर, आपने सीखा है जीना, याग सेवा की कहानी, कह रहा सारा चमन है, अभी लुटाकर जहर को, अपने सीखा है पीना, जैन समाज आपका कर रहा अभिनन्दन आज- अध्यात्म का पथ आप से हो रहा है आलोकितशांत चित्त बन आप तो, साधना में ही मगन है। मुद्रिका की पीठ पर, नित चमकता है ज्यों नगीना ।
अभिनन्दन-वन्दन के बोल, आज यहां चर्चित है, मोद लिए मन की, सब आशाएँ अर्पित है, महासतीजी का जीवन, मंगलमय सुदीर्घ बने'मुनि गणेश' विश्वास भरे,भावों के सुमन समर्पित है।
ब धा ई गीत
-मगनमुनि 'रसिक'
महासती श्री पुष्पवतीजी, आज म्हारो मनड़ो हरियो है।
नाम सभी मन मोहे जी, गीत गौरव सुं भरियो है ।।
तप संयम री सौरभ फैली, हिवड़े हरष मनाऊँ जी,
जैन जगत में सोहेजी। मधुर लहर में झूम-झूम ने,
सुयश सब मिल गावे हैं। महिमा गाऊँजी ॥ टेर।।
दर्शन दुर्लभ पावे हैं।
पावन नाम सुनाऊँजी ॥ परम आराध्य विश्व-सन्त,
मधुर लहर में झूम-झूम के० ॥ २॥ ___ श्री पुष्कर मुणीश्वर प्यारा जी,
जन्म भूमि है नगर उदयपुर, उपाध्याय हैं श्रमण संघ के,
जग जाहिर कहलावे जी। __मुझ नयनों का ताराजी।
सूर्यवंशी री है राजधानी, अनुपम शोभा छाजे है,
छटा सुरम्य सुहावे जी॥
नगरी झीलों की है भारी, सभा में सिंह ज्यूं गाजे है।
देखता आवे हैं नर-नारी । चरण में शीश झुकाऊँजी ।।
नयन अभिराम बताऊँजी ।। मधुर लहर में झूम-झूम कर० ॥१॥ मधुर लहर में झूम-झूम के० ॥ ३॥ ५२ | प्रथम खण्ड, शुभकामना : अभिनन्दन
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