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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ५० ( १३ ) सन्देश | नवयुग का निर्माण कर रही, बहनों को दे नव वनिताओं की ओर आपका, जाता रहता ध्यान विशेष ॥ ( १४ ) रूढिवादिता अन्धश्रद्धा में, जो हैं भोली महावीर का दे उनका हरती दोष ( १५ ) नारी वर्ग रहे क्यों पिछड़ा, पिछड़ा है न जब नर वर्ग । दोनों की उन्नति से ही, यह संसार बनेगा स्वर्ग ॥ बहनें ग्रस्त । सन्देशा, आप समस्त ॥ ( १६ ) आज समाज रसातल जिससे, निश-दिन दौड़ा जाता तेज । बोलती बचो बचो है, भयानक बड़ा दाज- दहेज | कहा यह, ( १७ ) आपने पुनः पुनः नये-नये देकर के महा लोभ के कारण मानव, बड़ा भयानक पाता ( १८ ) बिन मांगे जो मिला दूध-सा, मांग लिया सो पानी है । उसको समझो नर्क बराबर, जिस में खींचातानी है ॥ तर्क । नर्क ॥ प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन ( १६ ) दुर्गुण की दुर्गन्ध दूरकर, जग पुष्प - समान दंभ द्वेष के निकट "पुष्पवती” मानवता का सबको ( २५ ) "चन्दन मुनि " पंजाबी ही क्या, कहता सारा जैन महासती श्री पुष्पवती को, देखें सतियों की प्यारा प्यारा, पाठ पढ़ाती हैं ॥ ( २१ ) साध्वीरत्न कहें न कैसे, भला आपको पण्डित लोग । शम दम संयम में ही रहता, लगा आपका जब उपयोग || ( २२ ) देवी और मानवी से भी, ऊँचे बहुत उठे हैं आप 1 धन्य वही तो जीवन होता, जो हो शांत सरल निष्पाप ॥ ( २३ ) की । आज जरूरत है अति ऐसी, साध्वी की सन्नारी दशा बदल दे दिशा बदल दे, गिरी देश की नारी की ॥ महकाती जाती है । आपका जीवन, कहलाती हैं । समाज | ( २० ) कपट क्लेश के, कभी न जाती है । हे कल्याणी ! धर्म जैन धर्म की श्रमण संघ की, रहे आपसे होती सरताज ॥ ( २४ ) मृदु व्याख्यानी ! निशानी । मंगलमय | जय || www.jainel
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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