SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 523
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिख भेजा व्याख्यान तर्क-सिद्धान्त सुमण्डित, चकित रह गये पढ़ कर उसे विदेशी पण्डित । एक वाक्य भी कर न सके उसका वे खण्डित, देख मौन हो गये जैन- सिद्धान्त प्रचण्डित, ॥ अद्यापि शिकागों नगर के प्रश्नोत्तर पढ़कर कहीं। जैनी गौरव से फूलते, मोद समाता है नहीं । किये जैन-सिद्धान्त तर्क-द्वारा प्रति पादित, किये पुरातन शास्त्र युक्ति-द्वारा सम्पादित । किये विपक्षी-वृन्द वाद में नित्य पराजित, किया देश में जैन धर्म जय घोष निनादित ॥ उज्ज्वल यश चमका देश में, अति प्रचण्ड मार्तण्ड सा। आतंक जैन का छा गया, अचल और अखण्ड सा॥ (१०) धूम मची छा गई लोक में कीर्ति-कहानी, सब दिग से जिज्ञासु, हठी, वादी, अभिमानी। आये सम्मुख, किन्तु हुए आ पानी पानी, हुए शीघ्र ही शिष्य सुने पर अमृत-वाणी ॥ जादू था उसकी बात में, वह आत्मिक बल पूर्ण था। जो सम्मुख आया हो गया, तत्क्षण ही मद - चूर्ण था। (११) नित्य आप की कीर्ति-कथा कवि-वृन्द कहेगा, कृति-कलाप सुन सुहृद अकथा आनन्द लहेगा। हृदय-पटल पर चित्र विनिमित सदा रहेगा, यशोगान की सुधा-धार में जगत बहेगा ॥ जो यत्न आपने है किये, जैन-समाज-विकास में, वे स्वर्णाक्षर- अंकित रहें, सदा जैन- इतिहास में ॥ (१२) सीखो युवको । आत्मत्याग-आदर्श यही है, जीवन का साफल्य, सत्य-उत्कर्ष यही है। श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy