SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरणों में शत शत वंदन ___- साध्वी श्रीलक्ष्यपूर्णा श्री जैन सुशासन के सत्प्रेरक, मानवता आराधक। सन्त मनस्वी ज्योति पुंजवर, ज्ञान गीत के गायक ॥ सत्य अहिंसा आराधन से, था पावन तव तन-मन । सत्य अहिंसा साधक मुनिवर !, चरणों में शत वन्दन ॥ धर्म-सुमंगल की धारा है, धर्म सुशान्तिदायक । धर्मद्वार है मानवता का, धर्म सुभक्ति नायक ॥ धर्म-ध्यान ही जिसकी खातिर, था जीवन का उपवन । धर्म ध्यान के हे सत्प्रेरक, चरणों में शत वन्दन ॥ मौन-साधना खातिर जिसका, था जीवन धन अर्पित । ज्ञान-आचरण के द्वारा, जिस नर में था अवभासित ॥ ऐसे नर वन्दन से जीवन, बन जाता है पावन । पावनता की सजल ज्योति के, चरणों में शत वन्दन ॥ जैनधर्म की बगिया के, मुस्कराते सुमन निराले । उग्र-विहारी शान्त स्वभावी, दुखियों के रखवाले ॥ ४३८ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy