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________________ श्रमण परम्परा के उज्ज्वलतम नक्षत्र थे गुरु विजयानंद - धर्मपाल जैन रोपड़वाले इस विशाल विश्व में प्रतिदिन और प्रतिघंटे ही नहीं; अपितु प्रतिक्षण अनगिनत आत्माएं मानव के रूप में अवतरित होती है तथा अपनी भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को अपने पूर्व संचित कर्मों के अनुसार पार करती हुई अन्त में काल का ग्रास बन कर इस भूतल से विदा हो जाती है। किन्तु कौन उनका लेखा जोखा रखता है? कौन इतिहास में उन सब की जीवनियां संकलित करता है? और कौन उन सभी को स्मरण करने में अपना अमूल्य समय नष्ट करता है? मनुष्य का स्वभाव केवल उन्हीं आदर्श पुरुषों को स्मरण करने का है, जो अपने जीवन की विशेषताओं से संसार को चमत्कृत कर जाते हैं, जो जीवन जीने की कला सिखा जाते हैं तथा अपना सम्पूर्ण जीवन संसार के अन्य प्राणियों के हितार्थ व्यतीत कर जाते हैं। ऐसे महापुरुष ही संसार में अपना नाम अमर कर जाते हैं और युगों-युगों तक समाज एवं विश्व के लिए सद् प्रेरणा का केन्द्र बने रहते हैं। अनंतकाल तक मनुष्य उन्हें स्मरण करता है और उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को भी सार्थक बनाने का प्रयास करता है। . हमारी भारत वसुन्धरा रत्नगर्भा है । इसने समय-समय पर ऐसे ही नर रत्नों को जन्म दिया है, जिन्होंने मानव को महामानव बनाने का और आत्मा को परमात्मा बनाने का प्रयत्न किया है। उसे इस धरातल पर येन-केन प्रकारेन असीम वैभव प्राप्त कर लेना या नाना प्रकार के वैज्ञानिक आविष्कारों के परिणाम स्वरूप निर्मित की जानेवाली अद्भुत एवं विस्मय जनक वस्तुओं का श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ ३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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