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________________ धार्मिक पुस्तकों को ध्यानपूर्वक पढ़ों।" अहमदाबाद के एक सेठ दलपत भाई की एक धनिक वैष्णव से मित्रता थी । उसका बड़ा लड़का ग्रैजुएट था और पश्चिमी सभ्यता के कुसंस्कारों से प्रभावित होकर पादरियों की चाल में आ गया था। कुसंगति ने उसमें शराब व मांस की बुरी आदत भी डाल दी थी। उसे आचार से पतित देख कर माता-पिता बहुत व्यथित हुए। उन्होंने सेठ दलपत भाई को अपनी व्यथा सुनाई। सेठजी ने श्री आत्मारामजी के विषय में उन्हें बताया और कहा कि किसी प्रकार लड़के को इनके पास ले जाओ। वे अपने पुत्र को आपके पास ले आए। कुछ मिनटों के उपदेश ने ही ऐसा चमत्कारी प्रभाव डाला कि वह लड़का कुसंगति से हमेशा के लिए बच गया। वि. सं. १९४२ के सूरत के चतुर्मास के बाद अहमदाबाद से सेठ दलपतभाई का श्री आत्मारामजी के नाम एक पत्र आया था। उस पत्र में सेठजी ने लिखा था कि कुछ कुलीन और अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त नवयुवक पादरियों के बहकाने से ईसाई होने वाले है। आप शीघ्र अहमदाबाद पधारने की कृपा करें । पत्र मिलते ही आप बड़ौदा से विहार कर अहमदाबाद पहुंचे और ईसाई मिशनरियों की चालों पर एक सार्वजनिक सभा में भाषण दिया। आप ने उस व्याख्यान में यह सिद्ध किया कि ईसाई मत में जितनी खूबियां है, वे सब जैन धर्म से ली गई हैं। आपने बाइबल के कई उद्धरण जनता के सामने रखे, जिन का सब पर बड़ा प्रभाव पड़ा। आपने उन्हें बताया कि पादरी संस्कृत और प्राकृत भाषाओं से अनभिज्ञ होने के कारण भारतीय धार्मिक साहित्य को समझने में असमर्थ हैं और कपोलकल्पना कर हंसी उड़ाते है। बाइबल में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख है जो संभव नहीं। जो लोग शीशे के मकानों में रहते हैं, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फैंकने चाहिएं । समझदार लोगों को ईसाई बनने से पहले अपने साहित्य और इतिहास की उनके साहित्य व इतिहास से तुलना अवश्य करनी चाहिए, तब उन्हें सच्चाई का ज्ञान होगा। आपके सत् परामर्श का बहुत प्रभाव पड़ा और कई नवयुवक ईसाई होने से बच गए। इस प्रकार भी श्री आत्मारामजी ने इस बात का अनथक परिश्रम किया कि भारतीय युवक विवेक खोकर ईसाई मिशनरियों के झूठे जाल में न फंसे । यदि उन्हें अध्ययन द्वारा ईसाई धर्म अच्छा प्रतीत होता है तो उनका कर्त्तव्य है कि वे पहले अपने धर्मशास्त्रों का नियमपूर्वक अध्ययन अवश्य कर लें ताकि ठीक ठीक तुलना हो सके और वे सचाई के ज्ञान से अनभिज्ञ न रहें। श्री आत्मारामजी ने तत्कालीन अन्य सुधारकों के समान भारतीय धर्म, दर्शन तथा इतिहास पर पश्चिम से होने वाले आक्रमणों का डट कर सामना किया और सच्ची भारतीय सभ्यता व संस्कृति का चित्र विश्व के सामने रखा। ३६४ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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