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________________ भारी पुण्य प्रकर्ष था। सिद्धाचल जी पर दादा की मूल ढूंक में प्रतिष्ठित आप प्रथम आचार्य है। इतिहास में ऐसा कोई उल्लेख या साक्ष्य अनुपलब्ध है जो इस बात का प्रमाण हो कि इससे पूर्व पूर्ववर्ती किसी अन्य आचार्य भगवन्त की प्रतिमा वहां स्थापित हुई हो। इस शाश्वत तीर्थ की भांति आपकी कीर्ति भी सदा स्थाई रहेगी। अमर रहेगा निस्वार्थ उपकार आचार्य भगवन्त का जीवन वृत त्याग और परिषह की अमरकथा है । सनातन जिनधर्म के प्रचार में जितने परिषहों का सामना उन्होंने किया, कई-कई दिनों तक निराहार रहकर अपमान, अवज्ञा, निंदा का कड़वा चूंट बेहिचक पिया, निश्चित है भविष्य में किसी श्रमण को इतना कष्टसाध्य परिश्रम नहीं करना पड़ेगा क्योंकि गुरुदेव के करकमलों से सिंचित संवेग धर्म का उपवन लहलहाते द्रुमदलों से सुशोभित रहेगा। और उसके सहज पके मृदुफल हमें सदैव मिलते रहेंगे। धार्मिक एवं समाज सुधार का ऐसा कोई क्षेत्र रिक्त नहीं, जिसके लिए आचार्य देव ने उत्सर्ग न किया हो । आज शासन प्रभावक, प्रवचन प्रभावक एवं युग प्रभावकों की भीड़ बढ़ती जा रही किन्तु आप जैसा वास्तविक रूप में समर्पित शासन सेवक कहीं दिखाई नहीं देता । यदि स्वयं वीणावादिनी मां शारदा आपकी अनूठी शासन सेवा की श्लाघा हेतु प्रशंसाओं का पर्वत खड़ा कर दे या उपमाओं का सागर सुखा दे तो भी अपने भक्तिपूरित मन को तृप्त नहीं कर पाएगी। हसंते-हंसते कष्टों का आलिंगन करने वाले अगाध आत्मशक्ति सम्पन्न आचार्य देव के जीवन वैभव की उपर्युक्त झलक सिन्धु में बिन्दु से भी न्यून है। समर्पित शासन सेवक ३५१ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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