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________________ 'समकित महल मनोहर, संतोष सिंहासन सार रे' संयम शियल रथ जानिए शम दम सुभट परिवार रे' तृष्णा तरुणी दूर टारी, विरति रानी नार रे' युवराज कुमार संवेग है, विवेक मंत्रीधार रे' बैठे तहां गुरु राज आतम, मुद्रा मुनि सुखकार रे' चामर धम-शुक्ल दोऊ जस कीर्ति छत्र अपार रे॥' गुरुदेव की विराटता, लोक मांगल्य, ज्ञान-गरिमा का रूपक अलंकार द्वारा गुरु वल्लभ ने शोभनीय वर्णन किया है। जैन जगत ही नहीं, समस्त जगत ऐसे विराट महर्षि को पाकर ज्योतित हुआ। उन्होंने अपने पट्टालंकार गुरु वल्लभ की आत्म-ज्योति प्रज्वलित कर जगत को अनुपम उपहार भेंट दिया । जग वल्लभ गुरुवर ने अपने गुरुदेव के मिशन को आगे बढ़ाया। सरस्वती मंदिरों की स्थापना, मानव-संस्कृति केन्द्र जिनालयों का निर्माण एवं जीर्णोद्धार, ग्रन्थ भंडारों का उद्धार तो गुरु वल्लभ ने अपने गुरुदेव के आदेश से किया ही इसके साथ अपने भक्ति काव्य से इस भौतिक युग में भक्ति की भागीरथी प्रवाहित कर जनता-जनार्दन को आत्म-सुख की ओर उन्मुख किया। परोपकार, सेवा भावना, दान, शील, तप आदि की भाव उर्मियों को जनता में उद्वेलित की फलस्वरूप मानव स्वार्थ को छोड़कर निस्वार्थ की ओर मुड़ गया। अन्त में मैं न्यायाम्भोनिधि गुरुदेव के समग्र व्यक्तित्व पर एक शब्दचित्र 'हरि गीतिका' छन्द में प्रस्तुत कर इस महर्षि के चरण कमलों में अपने जीवन को कलापुष्य के समान समर्पित करता हूं। गुरु-प्रशस्ति (हरिगीतिका छन्द) श्रीमद् विजयानंद सूरिजी, लोक के कल्याण थे। श्री क्षीरसागर तुल्य करुणा, आर्त के निर्वाण थे। क्रान्तिदर्शी भविष्यदृष्टा, ३४० श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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