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________________ पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज : लोक-मंगल के लिए अर्पित जीवन - डॉ. जवाहरचन्द्र पट्टनी विश्व में महान विभूतियां लोक मंगल की ज्योति फैलाने के लिए अवतरित होती है। उनके जीवन का प्रकाश अंधकार को सदा दूर करता है । इस विषय में कविवर लांगफेलों की ये अमर पंक्तियां स्मरण हो आती है। 'महापुरुषों के जीवन हमें स्मरण दिलाते हैं कि हम भी अपने जीवन को उदात्त बना सकते हैं । वे इस विश्व से विदा होने पर समय के बालूकणों पर अपने चरण अंकित कर देते हैं।" निश्चय ही पूज्य आत्मारामजी महाराज ने अपने जीवन को लोक-मंगल के लिए अर्पित कर अमरत्व प्राप्त किया। उन्नीसवीं शताब्दी में जन्में इस महर्षि ने लोकांधकार को अपने ज्ञान प्रकाश से दूर किया। इनकी विद्वता देश-विदेश में फैल चुकी थी। उनकी ज्ञान-गरिम से प्रभावित होकर संस्कृत के महान विद्वान अंग्रेज डॉ. ए. एफ. रूडॉल्फ हार्नल ने अपने संपादित महान ग्रंथ 'उपासकदशांग' में कृतज्ञता पूरैक ये उद्गार प्रकट किए: दुराग्रह ध्वान्त विभेद भानो । हितोपदेशामृत सिन्धुचित्ते ॥ संदेह सन्दोह निरास कारिन् । जिनोक्त धर्मस्य धुरंधरोसि ॥१॥ पूज्य आत्मारामजी महाराज की ख्याति दूर-दिगन्त में फैल चुकी थी। अत: उन्हें ई. सन् श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताव्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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