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________________ हैं उनं के लिए यह पुस्तक लिखी गई है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा में विशिष्ठ प्रसंगों पर पूजाएं पढ़ाने का शास्त्रीय विधान है। जिनमें सत्रह भेदी पूजा, अष्ट प्रकारी पूजा, स्नात्र पूजा, नवपद पूजा आदि प्रमुख हैं। वे सभी पूजाएं गुजराती भाषा में अनेक जैन कवियों की उपलब्ध है। गुजराती में होने से इसके राग और भाव पंजाब और राजस्थान के लोग समझ नहीं पाते थे। इसलिए उनके लिए हिन्दी भाषा में पूजाओं की आवश्यकता और अनिवार्यता प्रतीत हुई। पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज ने इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए हिन्दी भाषा में पूजाओं, स्तवनों और सज्झायों की रचना की। हिन्दी भाषा में पूजाएं रचने वाले वे प्रथम जैन आचार्य कवि हैं। संवत् १९२७ में बिनौली में उन्होंने आत्मबावनी की रचना की। संवत् १९३० में अम्बाला में जिन चौबीसी की रचना की ।संवत् १९४० में बीकानेर में बीस स्थानक पूजा की रचना की । संवत् १९४३ में पालीताणा में अष्ट प्रकारी पूजा की रचना की । संवत् १९४८ में पट्टी में नवपद पूजा की रचना की । संवत् १९५० में जंडियालागुरु में स्नात्रपूजा की रचना की। । उनकी ये पजाएं और स्तवन हिन्दी भाषी क्षेत्र में सर्वत्र प्रचलित है। और हजारों व्यक्ति इनसे लाभान्वित हो रहे हैं । उन्होंने गद्य और पद्य दोनों विद्याओं में जैन साहित्य की विपुल रचना करके जैन धर्म, दर्शन, साहित्य और समाज पर महान उपकार किया है। उनकी इस साहित्यिक देन और कार्य को कभी भुलाया नहीं जा सकता। धर्म प्रचार का कार्य पंजाब देशोद्धारक, न्यायाम्भोनिधि, विश्व वंद्य विभूति आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराज का सम्पूर्ण जीवन जिन वीतराग अरिहंत प्ररुपित जैन धर्म को समर्पित था । श्रमण भगवान महावीर स्वामी की शास्त्रीय श्रमण परंपरा के अनुरूप उन्होने अपना जीवन यापन किया । यद्यपि वे जन्मत: जैन नहीं थे, पर जैन धर्म के क्षेत्र में आकर धर्म के अगुवा और नायक बन गए । उनका अप्रमत्त, जागृत और प्रेरक जीवन जैन धर्म की उन्नति और प्रतिष्ठा का कारण बना था। उन्होने अपने जीवन के प्रत्येक पल का प्रयोग आत्म-साधना करते हुए जैन धर्म के प्रचार एवं प्रसार में किया। उनके जीवन का प्रत्येक दिन अपने आप में एक घटना को एक इतिहास को एक प्रेरणा को और एक गौरव को लिए हुए हैं। आगम साहित्य के गहन अध्ययन के बाद उन्होंने अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य जैन धर्म के प्रचार और प्रसार का बनाया था। वे जहां-जहां भी गए, जो-जो कहा और जो कुछ लिखा, श्रीमद् विजयानंद सूरि: जीवन और कार्य २९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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