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________________ महापर्व की भव्य आराधना करवाई जाती है। अपनी सुविधा के अनुरूप वे तीर्थ यात्राएं करते हैं। कई मुमुक्षुओं ने संविज्ञ दीक्षाएं ग्रहण की है। कहना न होगा कि वर्तमान में पंजाब के श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज का चहुंदिस विकास हो रहा है। ___आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वर जी महाराज ने पंजाब में संविज्ञ पंरपरा का बीज बोया और उनके पट्टधर पंजाब केसरी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज ने उस बीज को संवर्धित किया था। साहित्यिक कार्य साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। जिस युग में साहित्य-सृजन होता है उस तत्कालीन युग का प्रतिबिंब उस पर पड़ता हैं। ऐसे में साहित्य उस युग के इतिहास, परिस्थिति और वातावरण का प्रत्यक्ष साक्षी बन जाता है। जिस साहित्यकार का साहित्य जितना महान, युगीन और कालजयी होता है, साहित्यकार भी उतना ही महान प्रतिभा से युक्त होता है । साहित्य सृजन के द्वारा साहित्यकार अमर हो जाता है। उसका साहित्य पढ़कर हम साहित्यकार के रचना संसार एवं उसके आन्तरिक व्यक्तित्व से भलीभांति परिचित हो सकते हैं। रचयिता उसकी रचना में जीता है। उसके हृदय की धड़कन उसके साहित्य के प्रत्येक पृष्ठ में सुनाई देती है। रचनाकार की सशक्त कलम उसके सशक्त व्यक्तित्व की पहचान होती है। आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज का वास्तविक परिचय उनके साहित्य से मिलता है। उनके द्वारा रचित गद्य एवं पद्य साहित्य के प्रत्येक ग्रन्थ, ग्रन्थ के प्रत्येक प्रकरण, प्रकरण के प्रत्येक विषय, विषय के प्रत्येक परिच्छेद, परिच्छेद के प्रत्येक वाक्य और वाक्य के प्रत्येक शब्द में उनके प्रकांड, अगाध एवं विशाल विद्वत्ता तथा अध्ययन, अप्रतिम प्रतिभा, सूक्ष्म दृष्टि, विषय प्रतिपादन की आकर्षक शैली, निर्भय व्यक्तित्व, अपरिमेय तर्क शक्ति, सत्य के प्रति अनन्य अनुराग और जिन शासन सेवा की ललक आदि सभी विशेषताएं उजागर होती है। श्री आत्मारामजी महाराज के साहित्य सृजन के पीछे निश्चित उद्देश्य थे। उनका साहित्य उस युग की मांग थी। उस युग के वातावरण की कुछ विवशताएं थीं, जिनसे विवश होकर उन्होंने अपनी कलम उठाई थी। उस समय जैन धर्म और दर्शन के विषय में लोगों में अनेक प्रकार की अज्ञानमूलक श्रीमद् विजयानंद सूरि: जीवन और कार्य २८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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