SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकांड पांडित्य, ओजस्वी वक्तृता और चारित्रिक सम्पन्नता के विषय में अनेक कहानियां सुन रखी थी । इसलिए समग्र नगर उनकी अत्यन्त उत्सुकता और जिज्ञासा से प्रतीक्षा करने लगा। अहमदाबाद के नगर सेठ प्रेमाभाई हेमाभाई और दलपतभाई, भगुभाई ने अपने दो श्रावकों को उनकी सेवा में पाली से अहमदाबाद तक साथ चलने के लिए भेजा। वे आत्माराम जी से मिले और नगर सेठजी की भावना से उन्हें अवगत कराया। इस पर उन्होंने कहा कि सेठजी की इस सेवा भावना के लिए हम उनके कृतज्ञ हैं: परंतु आप लोगों को हमारी सेवा में रहने की आवश्यकता नहीं। हम स्वयं यथा समय अहमदाबाद पहुंच जाएंगे। वे दोनों श्रावक पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज का आशीर्वाद लेकर पुन: अहमदाबाद लौट गए। गोड़वाड की पंचतीर्थी राणकपुर, वरकाणा, मुछाला महावीर, नाडोल, नारलाई और आबू देलवाड़ा की यात्रा करते हुए अहमदाबाद के पास आए। कई दिनों से उनके भव्य स्वागत की तैयारी में अहमदाबाद व्यस्त था। लोगों की आंखों में उत्सुकता, प्रसन्नता और जिज्ञासा आदि कई भाव समाए हुए थे। उनके असीम उल्लास और उमंग का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि नगर प्रवेश के दिन चार हजार लोग पांच कि.मी. तक उनका स्वागत करने के लिए सम्मुख गए थे। नगर में मुनि बुद्धि विजयजी महाराज विराजमान थे । वे भी पहले स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षित हुए थे। तब उनका नाम बुटेरायजी महाराज था । वे लुधियाना के पास दुलुवा गांव के सिक्ख थे। स्थानकवासी सम्प्रदाय में रहते हुए उन्होंने आगमों का गहन अध्ययन किया। तब उन्हें विशुद्ध जैन सनातन परंपरा का बोध हुआ। और उन्होंने अहमदाबाद में आकर मुनि श्रीमणिविजयजी से संविज्ञ परंपरा की दीक्षा अंगीकार करली थी। पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज मुनि श्री बुद्धि विजयजी की सेवा में उपस्थित हुए। और उन्हीं का शिष्यत्व ग्रहण करने की अपनी इच्छा व्यक्त की। इससे पहले कि वे बुद्धि विजयजी से संविज्ञ परंपरा की विधिवत् दीक्षा ग्रहण करें, एक बार शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा कर लेना चाहते थे। वे शत्रुजय तीर्थ की महानता, पवित्रता, प्राचीनता और यात्रा के महत्व के विषय में शास्त्रों में पढ़ चुके थे । इसलिए वे पालीताणा आए । शत्रुजय पर्वत का आरोहण किया और भगवान ऋषभदेव के दरबार में पहुंचे। भगवान के दर्शन श्रीमद् विजयानंद सूरि: जीवन और कार्य २७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy