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________________ सकूँगा। आगरा से विदा होते समय पंडित रत्नचंदजी ने आत्मारामजी को तीन प्रतिज्ञाएं करवाई। (१) अपवित्र हाथों से शास्त्र को कभी मत छूना। (२) मूर्तिपूजा का यदि समर्थन न कर सको तो कम से कम उसकी निंदा मत करना। (३) हमेशा अपने पास दंडा रखना। पंडित रत्नचन्दजी ने उन्हें जल्दी ही भगवान महावीर स्वामी के वास्तविक धर्म का प्रवर्तन कर संसार का अधिक से अधिक कल्याण करने की प्रेरणा और आशीर्वाद दिया। पूज्य आत्मारामजी महाराज ने इस प्रेरणा और आशीर्वाद को स्वीकार किया और क्रांति का शंखनाद करने का दृढ़ संकल्प करके आगरा से विहार किया। सत्य के लिए संघर्ष ई. सन् १८६३ के आगरा चातुर्मास के बाद पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज के विचारों का पूर्णरूपेण परिवर्तन हो गया। वे इस निश्चय पर पहुंच गए कि जिस स्थानकवासी परंपरा में मैं दीक्षित हुआ हूं, वह भगवान महावीर स्वामी की वास्तविक श्रमण परंपरा नहीं है। उनकी श्रद्धा मूर्तिपूजा में हो गई । इसलिए स्थानकवासी सम्प्रदाय का सबसे बड़ा आधार ही नष्ट हो गया। उन्हें न अपने वर्तमान वेश पर श्रद्धा रही, न अपनी क्रियाओं पर । आगरा के चातुर्मास के पहले जो आत्मारामजी थे वे अब नहीं रहे। वे आगरा से दिल्ली आए। दिल्ली में उनके गुरु जीवनरामजी महाराज मिले। अपने गुरु के प्रति उनका अनन्य अनुराग और समर्पण भाव था क्योंकि सर्व प्रथम उनके प्रबोधक वे ही थे। परंतु अपने गुरु से भी अधिक अनन्य और अद्वितीय अनुराग एवं श्रद्धा थी उन्हें आगम शास्त्रों के वास्तविक ज्ञान पर । वे आगम सत्य के स्वीकार के लिए किसी से समझौता नहीं करना चाहते थे। चाहे इसके लिए कितना ही बड़ा मूल्य क्यों न चुकाना पड़ें। उन्होंने अपने गुरु जीवनरामजी को विनम्रता पूर्वक स्वयं के विचारों से अवगत करा दिया। पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज यह अच्छी तरह जानते थे कि मेरे विचार सुनकर गुरुजी को दुःख होगा। फिर भी वे सत्य को छुपाना नहीं चाहते थे। अपने ही शिष्य से अपने ही सम्प्रदाय के विरुद्ध बातें सुनकर जीवनरामजी को दुःख हुआ। उन्हें आत्मारामजी जैसे महान प्रतिभाशाली, प्रकांड विद्वान और प्रभावशाली प्रवचनकार श्रीमद् विजयानंद सूरिः जीवन और कार्य २६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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