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________________ महामहिम नाम अंकित हुआ था- विश्व वंद्य विभूति, महान ज्योतिर्धर, न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज का जो इतिहास के पृष्ठों पर अपनी अमर पहचान छोड़कर स्वयं ही एक इतिहास बन गए हैं। ई. सन् १८३६ में उनका जन्म हुआ और ई. सन् १८९६ में स्वर्गवास । इतने जीवन काल में उन्होंने जो कार्य किए हैं, अपने व्यक्तित्व से जो प्रभाव उत्पन्न किया है, अपनी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से जो विचार संपत्ति प्रदान की है, सत्य के लिए जो अनुराग और निर्भयता का पाठ सिखाया है, आगत युग के लिए जो शाश्वत संदेश और अज्ञान अंधकार को विदीर्ण कर ज्ञान का जो सर्वत्र आलोक प्रदीप्त किया है उन सब के घनीभूत प्रभाव से वे आज भी हमारे मध्य जीवत हैं। सौ वर्ष की सुदीर्घ अवधि भी उनके इस अखंड और अक्षुण्ण प्रभाव को कम नहीं कर पाई है । उनके इस प्रभाव को हजारों शताब्दियाँ भी मंद नहीं कर पाएंगी। उनका प्रभाव अजस्र - अखंड प्रेरणा का स्रोत है और आगत शताब्दियाँ उनसे निरंतर प्रेरणा ग्रहण करती रहेंगी । आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी महाराज एवं कार्यदक्ष आचार्य श्रीमद् विजय जच्चन्द्र सूरीश्वरजी महाराज आदि ठाणा का ई. सन् १९९२ का चातुर्मास सादड़ी में था । इस चातुर्मास में ही उन्होंने ई. सन् १९९६ में आगत श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज की स्वर्गारोहण शताब्दी उनके नाम-काम के अनुरूप भव्यतम रूप से मनाने की भूमिका बना दी थी। इस शताब्दी के उपलक्ष्य में उन्होंने पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज के समुदाय की परंपरा के अनुरूप ठोस, बुनियादी, रचनात्मक और समाज उपयोगी कार्य करने का संकल्प किया था । उसी चातुर्मास में उन्होंने साहित्यिक कार्यों का श्रीगणेश किया और गुरु विजयानंद के सभी अप्राप्य ग्रन्थों को पुन: प्रकाशन का सर्वोत्तम कार्य हाथ में लिया । श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज की छोटी-बड़ी कुल बारह पुस्तके हैं। उनकी वे सभी पुस्तकें तत्कालीन खड़ी बोली में लिखी गई है। सामान्य पाठक उन्हें समझने में कठिनाई अनुभव करता है । ऐसी स्थिति में उनका वह साहित्य लोकभोग्य नहीं बन सकता था । इस कठिनाई को दूर करने और उनके साहित्य को घर-घर पहुंचाने के लिए उसे सरल हिन्दी में प्रकाशित करने का निर्णय किया गया । सभी पुस्तकें अलग-अलग गुरु भक्त लेखकों को सरल हिन्दी करण के लिए सौंप दी गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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