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________________ स्वरूप दूर नहीं है। तभी तो किसी ने कहा- “प्रभु दरशन निज आतम दर्शन” प्रभु दर्शन से आत्मशुद्धि होती है । और आत्मशुद्धि से आत्मदर्शन होते हैं। शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा और प्रभु आदिनाथ के दर्शन से उन्हें परमात्मा दर्शन की अनुभूति हुई, तभी उनके मुख से उपरोक्त शब्द प्रकट हुए। आगे की पंक्ति में उन्होंने और भी स्पष्टीकरण किया है। पुंडरीक पमुहा मुनि बहु सिद्धा, सिद्धक्षेत्र हम जाच लहियो रे । पशु पंखी जिहां छिनक में तरीया, तो हम दृढ़ विश्वास गहियो रे ॥ पवित्रात्मा को तारने वाली, पशुपंखी को पावन करने वाली और अज्ञानी को ज्ञानवान बनाने वाली यह भूमि है। अत:अनंत सिद्धों, तीर्थंकरों और तपस्वियों की इस तपोभूमि में उनके मन में भी दृढ़ और प्रतीति हुई कि अब मुक्ति निश्चित है। सम्यक्त्व की दृढ़ता का यह परम लक्षण है। प्रभु की वाणी आगम रूप है। वर्तमान में ४५ आगम है। श्रुतपरंपरा से प्राप्त आगम प्रमाणरूप है ।वे परम श्रद्धेय और मान्य है। पंचम आरे में ये परम आलंबन है। पूज्य श्री की आगम पर अनन्य आस्था थी। आगम के गहन अध्ययन से उन्हें सच्चा मार्ग मिला । सत्य दर्शन उन्हें हुआ। इस बात को उन्होने इसी स्तवन में प्रगट किया है। दूर देशांतर में हम उपने कुगुरु कुपंथ को जाल पर्यो हैं। श्री जिन आगम हम मन मान्यो, तब ही कुपंथ को जाल जो रे ॥ सद् गुरु और सुपथ की प्राप्ति उन्हें आगमों के अध्ययन से हुई । आगमों से उन्होंने सत्य का नवनीत पाया। यह बात उनके उपरोक्त पद से सिद्ध हो रही है। भगवान की आगमवाणी और तीर्थों के प्रति उनका जो समर्पणभाव एवं श्रद्धा भक्ति थी, वह हमारे लिए अनुकरणीय है। भक्ति की धारा में डुबकी लगाने वाला भक्त जीवन को पावन बना लेता है। आत्म शुद्धि के लिए भक्ति सहज, सरल और सर्वोत्तम मार्ग है। पूज्य आचार्य जी की महातीर्थ शत्रुजय पर अपार श्रद्धा थी । वे यहां पर दो बार आए और अनेकों बार यात्रा कर दादा की भक्ति का आनंद उठाया। वे भक्त कवि थे। उनके कवि हृदय से सहज भक्ति की धारा बही ।उनके भक्तिपूर्ण और प्रेरक स्तवन और प्रेरणादाई पद सैकड़ों की संख्या में है। २४४ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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