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________________ महाराज का जीवन हमारा सबसे बड़ा मार्गदर्शक और सहारा है। उनका जीवन संसार के लिए सदा प्रेरणा का कार्य करता रहेगा। वे हमारे आद्य पुरुष हैं, आद्य गुरु है । यदि वे न होते तो हम भी न होते। आज पंजाब में जैन धर्म का जो विकास है, राजस्थान में जैन धर्म की जो स्थिरता है और गुजरात में जैन धर्म की जो भव्यता दृष्टिगत होती है। यह उन्हीं के कारण। तपागच्छ में साधु-साध्वियों की बहुलता, दुर्लभ ज्ञान भंडारों का संरक्षण, प्राचीन जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार और जैन धर्म और दर्शन का संसार में प्रचार इन सभी का श्रेय पूज्य श्री विजयानंद सूरि महाराज को जाता है। आज जैन धर्म का जो भव्य-उतुंग महल खड़ा है उसकी नींव में उन्हीं का पुरुषार्थ है । वे नींव के पत्थर थे। उन्हीं के आधार पर जैन धर्म स्थिर हुआ है। सौ वर्ष पूर्व जैन धर्म का भविष्य अंधकारमय हो गया था। उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया था। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक साधु उंगली पर गिनने योग्य रह गए थे। चारों ओर यतियों का साम्राज्य छा गया था। एक तरह से वे जैन धर्म के स्वामी बन बैठे थे। उनकी आज्ञा के बिना यहां कुछ भी नहीं होता था। अगर किसी साधु-साध्वी को चातुर्मास करना होता था तो श्रीसंघ यतियों की अनुमति लेता था । वे किसी को आचार्य नहीं बनने देते थे। अनेक प्रकार की विकृतियाँ जैन समाज में घर कर गई थीं। जो लोग जैन थे, वे जैन धर्म छोड़कर ईसाई और आर्य समाजी बन रहे थे। जैनों को न अपने इतिहास का ज्ञान था, न अपने धर्म के तत्त्वज्ञान का। अज्ञान और अशिक्षा ने जैन धर्म जैसे महान वैज्ञानिक धर्म को पतोन्मुख बना दिया था। उस समय भारत में अंग्रेजों का राज्य था। ईसाई लोग अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के लिए जैन धर्म को झूठला रहे थे । आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती जैन धर्म को ढोंगियों का धर्म कहते थे। इनके अतिरिक्त स्थानकवासी और तेरापंथी अपनी शास्त्र विरुद्ध अमूर्तिपूजक परंपरा को बढ़ावा दे रहे थे। जिन अरिहंत द्वारा प्ररूपित शाश्वत जैन धर्म और अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जिन शासन इन सभी के बीच 'बेचारा' हो कर रह गया था। ऐसे में पूज्य श्री विजयान्द सूरि महाराज आए और उन्होंने सिंह गर्जना की। उनकी सिंह गर्जना से वर्षों से सोया पड़ा जैन समाज जागृत हो गया। उन्होंने ईसाइयों का सामना किया। आर्य समाजियों द्वारा जैन धर्म पर लगाए जा रहे आक्षेपों का प्रतिवाद किया, जो लोग जैन धर्म छोड़कर अन्यत्र जा रहे थे उन्हें जैन धर्म में स्थिर किया । यतियों के साम्राज्य को समाप्त कर दिया, श्रमण परम्परा को पुन: प्रतिष्ठित किया, प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर जो जर्जरित होकर ढह रहे थे उनका जीर्णोद्धार करवाया, दुर्लभ ज्ञान भंडारों को संरक्षित करने की व्यवस्था की। कई सामाजिक कुरूढ़ियों को श्रीमद् विजयानंद सूरि म. का जीवन संदेश २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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