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________________ इस बात को सुनकर साधुओं के हृदय में दुःख हुआ । श्रावकों की त्योरियाँ बदली। वे कुछ बोलना चाहते थे, इतने में ही आचार्य श्री ने उन्हें रोककर कहा :- भाई उतावले न बनो। . गुस्सा न करो ! इसके कहने से हम माँसाहारी नहीं बन जाते । यह किस हेतु से हमें ऐसी बात कह रहा है उस हेतु को समझ लें। आचार्य श्री की बात सुनकर आगत ईसाई को बड़ी शर्म आई । उसके दिल ने कहा, - तूने बड़ा बुरा किया कि, ऐसे महात्मा को कठोर शब्द कहे । अब क्या हो सकता है? जो भाषा वर्गणा निकल गई वह निकल ही गई। आचार्य श्री ने पूछा :- तुम कैसे कहते हो कि हम माँसाहार से नहीं बच सकते हैं? ईसाई :- तुम दूध पीते हो या नहीं? आचार्य श्री- पीते हैं। ईसाई तो बस दूध, माँस और खून से ही बनता है जब माँस और खून से बना हुआ दूध पी लिया तो फिर बाकी रहा ही क्या? माँस नहीं खाना और दूध पीना यह कहाँ का न्याय है, आचार्य श्री - बेशक दूध की पैदाईश इसी तरह होती है। इसीलिए जैन मानते हैं कि ब्याई हुई भैंस का पन्द्रह रोज, गाय का दस दिन और भेड़ बकरी वगैराह का दूध आठ दिन तक नहीं पीना चाहिए । कारण कि उसके दूध में परिणमन होने में कसर रहती है । जब वह दूध के रूप में परिणमन हो जाता है तब जुदा ही पदार्थ बन जाता है। इस लिए इसमें कोई हानि नहीं समझी जाती। यह कोई दलील नहीं है कि जिससे पदार्थ बनता है उसको भी पदार्थ का खाने वाला जरूर खावे । अन्न के खेत में गंदी चीजें डाली जाती है, ईख, खरबूजा वगैराह की पैदाईश गंदगी की खाद से ही होती है, तो कोई यह कहेगा कि अन्न, खरबूजा आदि पदार्थों को खाने वाला गंदगी भी जरूर खाय? गंदगी खाकर पुष्ट बने हुए सुअर का माँस खाने वाला ईसाई क्या गंदगी भी खायेगा? सूनों तुमने जिस तरह का सवाल किया है उसी तरह का जवाब भी तुम्हें मिलेगा। अगर तुम्हारे कथन को तुम ठीक समझते हो और यह कहने की हिम्मत कर सकते हो कि, अन्नादि खाने वाला ईसाई गंदगी भी खाता है तो हमें भी तुम अपनी अक्ल के अनुसार जैसा मुनासिब समझो मान लो। हमारा इसमें कोई नुकसान नहीं है। हम तो यही मानते हैं कि, अन्नादि गंदगी २१६ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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